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( २६ )
पुष्पांजलित था ॥
हे मुनि पूर्व जन्म सम्बन्ध। तीनों के तुमकहो निबन्ध ॥ तब मुनिकसुनौचितधार । एकमृणालनगरसुखकार ॥ १७ ॥ नृप मंत्रीएकतहांश्रुतिकीर्ति । बन्धुमतीवनिता अतिप्रीति ॥ एकदिना बन क्रीड़ागयो । नारी संगरमतसोभयो ॥ १८ ॥ पापी सर्पस भक्षण करी । मंत्री मृतक लखी निजनरी ॥ भयांविरक्तजिनालयजाय । दिक्षालोनीमन हर्षाय ॥ १६ ॥ यथाशक्ति तप कुछ दिन करो। पाछे भ्रष्टभयो तपटरी ॥ गृहआरंभ करनचितठनो । तबपुत्री मुख ऐसे भनो ॥ २० ॥ तातजी मेरुचढ़ोकिहिकाज । फिर भवसिंधुपड़ेत जलाज ॥ यो सुनप्रभावतीवचसार । मंत्री को पकियो अधिकार ॥ २९ ॥ तब विद्या को आज्ञा करी । पुत्रो को ले बन में घरी ॥ विद्या जब बनमें लगई । प्रभावती मन चिंता भई ॥ २२ ॥ अरहंत भक्ति चित्तधरी । तब विद्या फिर आई खरो ॥ हे पुत्री तेरा चित जहां । वेगबोलपहुंचाऊ तहां ॥ २३ ॥ पुत्री कही केलाशके भाव । जिन दर्शनको अधिकहीचाव ॥ पूजाकरके बैठी व्हां । पद्मावति आई सो तहां ॥ २४ ॥ इतने मध्य देव आइयो । प्रभावती तब पूछन लयो ॥ हे देवी कहिएकिकाज | आयेदेवीदेव सीआज ॥ २५ ॥ पदमावति बोलो सार । पुष्पांजलि व्रत है सुअवार ॥ मामास शुक्ल पंचमी | पंचदिवस आरंभनअमी ॥ २६ ॥ प्राप यथाशक्ति व्यवहार । पूजो जिन चौबोसी सार ॥ नानाविधिके पुष्पजोलाय । करा एकमाला जोबनाय ॥ २७ ॥ तीनकाल वह माला देय । बहुत भक्ति से विनय करेय ॥ जपो जाप शुभ मंत्रविचार याविधिपंचवर्षअवधार ॥ २८ ॥ उद्यापन कीजे पुनियार । चार प्रकार दान अधिकार ॥ उद्यापनकी शक्ति होइ । तोदूनोन्नतकीजे लोइ ॥ २९ ॥ 'यह सुन प्रभावती व्रतलयो । पदमावती कृपा कर दयो ॥