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________________ ( २४ ) yourजतकथा | संगचतुर्बिधिको सन्मान । कियोदियांमन वांछितदान ॥. देखसेठ तिनकी सम्पदा | जायकही भूपतिस्तदा ॥ १८ ॥ भूपतितब पूछो वृत्तन्त । सत्यकहो गुणधर गुणवन्त ॥ देख सुलक्षणता कोरूप। अत्यानन्द भयोसोभूप ॥ १९ ॥ भूपतिगृह तनुजा सुंदरी । गुणधर को दीनी गुण भरी ॥ करविवाहमंगलसानन्द । हयगयपुरजनपरमानन्द ॥ २० ॥ मनवांछित पायेसुखभोग | विस्मितभयेसकलपुर लोग ॥ सुखसेर हतबहुतदिनभये । तबसबबन्धुवनारसगये ॥ २९ ॥ मात पिता के परशे पांय । अत्यानन्द हृदय न समाय ॥ बिगटीबिषमविषमबियोग | भयोसकलपुरजनसंयोग ॥२२॥ आठसातसोलह के अंक । रविप्रतकथा रवीअकलंक || थोड़े अर्धग्रंथबिस्तार | कहेंकबीश्वरजोगुण सार ॥ २३ ॥ यह ब्रतजोनरनारी करें । सो कयही दुर्गति नहिंपरें ॥ भाब सहित सोसबसुखहें । भानु कीर्तिमुनियर मकहें ॥२४॥ इति श्रीरविव्रतकथा सम्पूर्णम् ॥ पुष्णंजलि व्रतकथा । दोहा - बीरदेबकोप्रणमिकर, अर्धाकरोंत्रिकाल । पुष्पांजलिव्रत की कथा, सुनाभव्य अघठाल ॥ # ॥ चौपाई ॥ पर्बतबिपुलाचल परआय । समोशरण जिनबरकापाय ॥ तहंसुनराजाश्रेणिकराय । वन्दनचलेप्रियायुतभाय ॥ २ ॥ बन्दन कर पूछे नृप तबे । हे प्रभु पुष्पांजलि बूत अबे ॥ मोसेकोकरीचितलाय । कोनेकरो कहाभई आय ॥ ३ ॥ ॥ बोलेगौतम बचनरसाल । जंबू द्वीप मध्य सो विशाल
SR No.010024
Book TitleJain Vrat Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Jainilal Jain
PublisherLala Jainilal Jain Saharanpur
Publication Year
Total Pages39
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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