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________________ (२०) मुक्तावनीव्रतकथा ॥ मगधदेश देशों में प्रधान । तामें राजगृह शुभयान । राज्यकरे तहांगणिकराय । धर्मवंतसयको सुखदाय ॥२॥ ता गृह नारि चेलनासती । धर्म शीलपूरण गुणवती ॥ इकदिन समोशरणमहावीर ।आयो विपुलाचलपरधीर ॥३॥ सुन नृपअत्यानंदितभयो । कुटुम सहित बंदन को गयो । पूजाकरबैठो सुख पाय । हाथजोड़कर अर्जकराय ॥४॥ हेप्रभु मुक्तावलि व्रतकहो । यह कर कौनेक्याफल लहो॥ तब गौतमबोलेहाय । सुनौ कथा मुक्तावलि राय ॥ ५ ॥ याही जंबद्वीपमझार । भरत क्षेत्र दक्षिण दिशि सार । अंगदेश सोहे रमनीक । नगर बसे चंपापुर ठीक ॥६॥ नगरमध्य एकब्राह्मणबसे । नाम सोमशर्मा ससुलसे ॥ ता गृह एकसुताजोभई । यौवनमदकर पूरणठई ॥ ७ ॥ एक दिन देखे श्रीगुरु जबे । नग्न गात सो निदेतये ॥ अतिखोदेदुर्वचनकहाय । बहुतहीग्लानिचित्तमेलाय ॥८॥ ताकर महापापबांधियो । अवधिव्यतीतेमरण जुकियो। नरकजाय नानादुखसहे । छेदन भेदनजायनकहे ॥६॥ नरकआयु पूरीकर जोइ । भवभ्रमि द्विजगहपुत्रीहोइ ॥ निर्नालिकापड़ातिसनाम । अतिदुर्गंधादेहनिकाम ॥१०॥ कोई ढिंग आवे नहिंतहां। क्रमकर बडी भई सो वहां ॥ अन्नपानकरदुःखितमहा। जूठनभखेकष्टअतिलहा ॥११॥ एकदिवस देखे मुनिराइ । करप्रणाम विनवे शिरनाई॥ कौनपापमैं कीनोदेव । मैं पायोअतिदुःख अभेव ॥१२॥ तबमुनिवर पूर्व भवकहे । गुरु को निंदा से दुःखलहे ॥ तबदुगंधा जोड़ेहाथ । ऐसात्रतदीजेमोहिनाथ ॥१३॥ यासे रोग शोक सबजाय । उत्तम भव पाऊं गुरुराय ॥ me
SR No.010024
Book TitleJain Vrat Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Jainilal Jain
PublisherLala Jainilal Jain Saharanpur
Publication Year
Total Pages39
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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