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________________ AMum देशलगायतकथा । (१८) उत्तमक्षमाआदिअतिसार । दश मोब्रह्मचर्यगुणधार ॥ १५ ॥ पुष्पांजलिइसविधि दीजिये। तीनोंकाल भक्तिकीजिये। इसविधिदशवासरआचरो । नियमितवृतशुभकार्यकरो ॥१६॥ उत्तम दश अनशन करयोग । मध्यमवतकांजीकाभोग ॥ भूमिशयनकीजेदशराति । ब्रह्मचर्य पालोसुखपांति ॥ १७ ॥ इसनिधि दशवर्षे जबजाय । तबतकनत कीजै धर भाय ॥ फिरव्रतउद्यापनकीजिये । दानसुपात्रोंकोदोजिये ॥ १८ ॥ औषधि अभयशास्त्रआहार। पंचामतअभिषेकहिसार ॥ माइनोरचिपूजाकीजिये। छत्रचमरआदिकदीजिये ॥ १६ ॥ उद्यापनकी शक्ति न होय । तो दूनो व्रत कीजे लोय ।। पुण्यतनोसंचयभंडार । परमवपावेमोक्ष सोद्वार ॥ २० ॥ तबचारोंकन्योंव्रतलायो । मुनिवरभक्तिभावलखिदियो। यथाशक्तिवतपूरणकरो । उद्यापनविधिसे आचरो ॥ २१ ॥ अंतकाल वे कन्या चार । सुमरण करो पंच नवकार ॥ चारोंमरणसमाधिसुकियो । दशवस्वर्गजन्मतिनलियो ॥२२॥ षोडस सागर आयु प्रमाणं । धर्म ध्यान सेमें तहां जोन ॥ सिद्धक्षेत्र में करें विहार । क्षायक सम्यकउदय अपार ॥२३॥ सुभग अवन्तो देश विशाल । उज्जयनी नगरी गुणमाल ॥ स्थूलभद्रनामानरपती। रानीचारुसो अतिगुणवती ॥ २४ ॥ देव गर्भ में आये चार । ता रानी के उदर मझार ।। प्रथम सुपुत्र देव प्रभु भयो। दूजोसुतगुणचन्द्रभाषियो ॥२५॥ पदम प्रभा तीजो बलवीर । पदम स्वारथी चौथो धीर", जन्म महोत्सवतिनकोकरो। अशुभदोषगृहदोनों हरी ॥२६॥ निकल प्रभा राजा-की सुता । ते चारों परनी गुण युता । प्रथमसुलासोब्रहीनाम । दुतियकुमारीसो गुणधोम ॥ २७ ॥ - -
SR No.010024
Book TitleJain Vrat Katha Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLala Jainilal Jain
PublisherLala Jainilal Jain Saharanpur
Publication Year
Total Pages39
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size2 MB
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