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सुगंधदशमी कथा |
ऐसा व्रत उपदेशोमीहि । यासे तनु निरोग अबहोहि ॥ १६ ॥ दयावन्त बोले मुनिराय । सुन पुत्री ब्रूत चित्त लगाय ॥ समताभावचित्तधरो। तुम सुगंधदशमीबूतकरो ॥ १७ ॥ यहव्रत को मनवचकाय । यासे रोग शोक सब जाय ॥ दुर्गंधाविनवे निकुताय । कहियेसविधिमहामुनिशय ॥ १८ ॥ ऐसे वचन सुने मुनि जबे । तव बोले पुत्री सुन अबे ॥ भादों शुक्लपक्षजवहोय । दशमीदिनआराधोसोय ॥ १६ ॥ चारों रस को धारा देव । मनमें राखो श्री जिनदेव ॥ शीतलनाथकीपूजाकरो । मिथ्यामोहदूरपरिहरो ॥ २० ॥ वतके दिन छोड़ो आरंभ । यासे मिटे कम का दंभ ॥ याकेकरतपापक्षयजाय । सोदर्शबर्पकरोमनलोय ॥ २१ ॥ जब यह व्रत संपूर्णहोय । उद्यापन कीजे चित जोय ॥ दशश्रीफल अमृतफलजान । नीबू सरससदाफलआन ॥ २२ ॥ दश दीजे पुरतक लिखवाय । यहबिधिसत्रमुनिदईवताय ॥ विधिसुनदुर्गंधाव्रतलयो । सबदुर्गंधततक्षणगयो ॥ २३ ॥ व्रत करआयु जो पूरणकरी । दशवें स्वर्ग भई अप्सरी ॥ जिनचैत्यालयबंदनकरे । सम्यकभावसदाउरधरे ॥ २४ ॥ भरत क्षेत्र तहंमग्धसुदेश | भूति तिलकपुर वसे अशेश ॥ राजा महीपाल हांजान । मदनसुन्दरीत्रियाबखान ॥ २५ ॥ दशवें दिवसे देवी आन । तोके पुत्री भई निदान ॥ मदनावलींनामधरतास । अतिसुरूपतनुसकलसुवास ॥२६॥ बहुत बात को करे बखान । सुरकन्या नाता उन्मान ॥ कोसांवी पर मदननरेंद्र | रानीसती करे आनंद ॥ २७ ॥ पुरुषोत्तम सुतसुन्दरजान । विद्यावंत सुगुणं की खान ॥ जो सुगंधमदनावलिजाय । सो पुरुषोत्तमकोपरनाथ ॥ २८ ॥
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