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________________ जैन-रत्नसार सूर्य उदय के उपरान्त दो घड़ी दिन निकल आने तक चारों आहारों का, णमुक्कार गिन कर त्याग किया जाता है वे चार प्रकार के आहार ये हैं : સ્પર્ ******** (१) असणं - अन्न, चावल, गेहूं, मूंग, चना, जवार आदि सब प्रकार के अनाज | सब अन्नों का आटा । सब तरह की साग, तरकारी । लड्डु, पेड़ा इत्यादि सब पकवान । आलू, मूली आदि सब प्रकार के कंद । दूध, चाय, दही, रोटी, राव, सब प्रकार की पतली और नरम वस्तुएँ । हींग, बेसन, सौंफ तथा सैंधवादिक नमक इत्यादि सब का समावेश “अशण" में होता हैं । (२) पाणं — जी का पानी, जौ के छिलके का पानी, चावल का पानी तथा गरम पानी इत्यादि सब प्रकार का पानी "पाण" में होता है । (३) खाइसं – नारियल, खजूर, आम, केला, अंगूर, अनार, ककड़ी, खीरा, अखरोट, बादाम, पिस्ता आदि सब मेवे तथा सब प्रकार के फल 'खादिम' कहे जाते हैं । साइमं —– पान, सुपारी, इलायची, लौङ्ग, पान का मसाला, दालचीनी, चूरनकी गोली आदि नुखवास चीजें तथा हरड़, बेहेड़ा, आंवला, तुलसी, कत्या, मुलैठी, तमाल पत्र वायविडंग, अजवायन, कुलिंजन, कवावचीनी, कचूर, नागरमोथा, पोकर मूल, बबूल की छाल, खैर की छाल इत्यादि वस्तुएं 'स्वादिम' कहलाती हैं । (१) "अण्णत्यणाभोगेण” :- अनाभोग टालके किया जो पच्चक्खाण अर्थात विस्मृति के कारण कोई भी वस्तु भूल कर सुख में डाली हो, परन्तु ज्ञान होने पर तत्काल उसको थूक देवे तो पञ्चक्खाण में दोष नहीं लगता । किन्तु जानने के बाद भी भक्षण करें तो पच्चक्खाण निश्चय भंग होता है । (२) “पच्छण्णकालेण” :—मेघ, रज, ग्रहण आदि के द्वारा सूर्य ढक जाने से या पर्वत की ओट में आजाने से सूर्य दृष्टिगोचर न हो, तब
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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