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________________ सूत्र विभाग . संपइ जिणवर बीस मुणि, विहुँ कोडिहिं वरणाण । समणह कोडिसहसढुअ, * थुणिज्जइ णिच्च विहाणि ॥२॥ जयउ सामिय जयउ सामिय रिसह सत्तुंजि, उजित पहु मिजिण, जयउ वीर सच्चउरिमंडण, भरुअच्छहिं मुणिसुव्वय । मुहरिपास दुह दुरिअखंडण, अवर विदेहिं तित्ययरा । चिहुं दिसि विदिसि जिं के वि, तीआणागय संपइअ वंदु जिण सव्वे वि ॥३॥ सत्ताणवइ सहस्सा, लक्खा छप्पण्ण अट्ठ कोडीओ। बत्तिसय वासिआइ, तिअलोए चेइए वंदे |४|| पणरस कोडिसयाई, कोडी बायाल लक्ख अडवण्णा । छत्तीस सहस असिइं, सासय बिंबाईपणमामि ॥५॥ जय विराय सूत्र जय ! वियराय ! जगगुरु ! होउ ममं तुह पभावओ भयवं । भव णिव्वेओ मग्गाणुसारिया, इट्ठफल सिद्धी ॥१॥ लोग विरुद्धच्चाओ, गुरुजणपूआ परत्थकरणं च । सुह गुरु जोगो तव्वयण, सेवणा आभवमखंडा ॥२॥ वारिज्जइ जइवि णियाण वंधणं वियराय ! तुह समये । तहवि मम हुन्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं ॥३॥ दुक्खखओ कम्मक्खओ, समाहिमरणं च बोहि लाभो अ । संपज्जउ मह एअं, तुह णाह ! पणामकरणेणं ॥४॥ सर्वमंगल मांगल्यं सर्वकल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधरमाणाम् जैन जयति शासनम् ॥५॥ कल्लाणकंद कल्लाणकंदं पढमं जिणिदं, संतिं तओ गेमिजिणं मुर्णिदं । पासं पयासं सुगुणिक्कठाणं, भत्तीइ बंदे सिरि वद्धमाणं ॥१॥ १ इसकी पहली गाथा में पहले, सोलहवें, बाईसवें, तेईसवे, चोयीसमें भगवान को वन्दन । दुमरी में तीर्थंकरों की स्तुति है, तीसरी में सिद्धान्तों की म्नुनि है, चौथोमें श्रुत देवता की । प्रस्तुति है। Ritrintelorkathathiasleeluutkiphelorinderlisticladkiokethelaloridantantraokartiensistiadiolatelionkistafadliatelookistiatichoolstallatiotairtelakiohitekola tantalelektrsealatakoshetatubeathtatatsirtrtatakinkirtantrit
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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