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________________ [ २६ ] पर आये और अनशन ग्रहण किया और माघ वदि त्रयोदशी को प्रातः काल चौरासी लाख पूर्व की आयु को पूर्ण कर भगवान् मोक्ष को गये । भगवान २० लाख पूर्व कुमारावस्था में, ६३ लाख पूर्व राज्य के पालन और सुखभोग में में, १००० वर्ष छद्मावस्था में और १००० वर्ष कम एक लाख पूर्व केवली अवस्था में रहे। ज्येष्ठ मास पर्वाधिकार ज्येष्ठ वदि त्रयोदशी के दिन सोलहवें तीर्थंकर श्री शान्तिनाथजी मोक्ष गये है इसीलिए ये दिन अति उत्तम माना जाता है। इस दिन समस्त श्री संघ सम्मिलित होकर मंदिर जी में जावे । विधि सहित शांति पूजा करावे और उस शान्ति जल को अपने २ घर ले जाकर छीटे । इससे श्री संघ के सामूहिक श्रीमारी, हैजा आदि हरएक रोगों का कभी प्रकोप नहीं होगा । कदाचित् किसी श्रावक के घर में कोई रोग हो अथवा अति चिन्ता फैली हुई हो तो शुभ दिन में शान्ति पूजा का महोत्सव कराना चाहिये। इससे आधि, व्याधि, दुःख, दरिद्रता आदि का अवश्य नाश होगा और आनन्द, मंगल की प्राप्ती होगी। शांति नाथ चरित्र इस जम्बुद्वीप के भरत क्षेत्र में हस्तिनागपुर नाम का नगर था । उस नगरी के राजा विश्वसेन थे । उनकी रानी अचिरा की कूख से ज्येष्ठ वदि द्वादशी के दिन भगवान् ने जन्म लिया। प्रभु का रंग सुवर्ण जैसा था और शरीर पर मृग का चिह्न था । प्रभु के गर्भ में आने से ही कुरुदेश में महामारी आदि उपद्रव शांत हो गये थे इसलिये माता पिता आपका नाम शांति नाथ रखा । युवावस्था को प्राप्त होने पर विश्वसेन राजा ने इनका अनेक राजकुमारियों से पाणि ग्रहण कर दिया । और २५००० वर्ष अवस्था में इनको राज्य भार सौंपा। एक दिन आयुधशाला में चक्ररन के उत्पन्न होने पर, प्रभु ने पृथ्वी के छहों खण्डों को जीता और चक्रवर्त्ती कहाये । भगवान् चौदह रनों (जिनमे एक २ रनके १००० हजार यक्ष अधिष्ठायक धे) चौसट हनार स्त्रियों, ८४-८४ लाख हाथियों, घोड़ों, रथों, नव महानिधियों, ६६ करोड़ ग्रामों के स्वामी थे । लोकातिक देवों की प्रेरणा से प्रभु ने वर्षी दान देकर १००० राजाओं के साथ ज्येष्ठ वढि चौदस को अपने पुत्र चक्रायुध को राज्य सौंप कर, दीक्षा ग्रहण की और दूसरे दिन मंदिर पुर के राजा सुमित्र के घर पारना किया। एक वर्ष तक बिहार कर प्रभु को पोप सुदि नवमी के दिन केवल ज्ञान हुआ । उसी समय चारों निकायों के देवों ने समवसरण की रचना की और भगवान् ने मधु क्षीरा मुख afrat तथा ३५ अतिशय वाणी मे धर्म देशना कही। उस मोक्ष दायक देशना को सुन कर उनके पुत्र चनायुध ने भी ३५ राजाओं सहित, अपने पुत्र को राज्य साँप कर दीक्षा ले लो और प्रथम गणधर हुए। इसप्रकार पृथ्वीपर विहार करते हुए प्रभुने बासठ हजार सुनियों और कमर माध्य दीक्षा दी। गरड नामक यक्ष प्रभु का अधिष्ठायक हुआ और निर्वाणी नाम की शासन देवी हुई ७५ फार वर्ष गृहस्थावास ने एक वर्ष ears Har में और जी अवस्था में रहे। सब मिलाकर प्रभु का आयु एक लाग्न वर्ष की थी। जिसमें वियर करने में लोगों के सब उपद्रव शांत हो जाने थे। अंत में अपना निर्माण जान शि
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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