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________________ dostostatistasestastacatiooeskotasalasasaradataakaashatanja-kalakankstogetalestioedeoledobhbitabhabhttsaheshtahaletattooltate जैन-रत्नसार wwwwwww www . muvvw. . Parlrlentilalmmerkarfalorlrriatriinfohtotralianimlarlal l मामा मामी भाचा एक गाना का न मा ragor ष्णा -stallat -tabya s नन्न | सेवसि ॥ मूलमंत्र वसीकरण, अवर सहू जगधंध । मणमूली ओषध करे । बुद्धिहीण जाचंध ॥६॥ दक्षिण दिसि पंखड़ी जपे नमो आयरिआणं । सोवणवण्हं सीस सहित उवए सहिणाणं ॥ ऋद्ध सिद्ध कारणे लाभ, ऊपर जे ध्यावे । पहरे पीलावत्थ तेह, मण-वंछिय पावे ॥७॥ इण झाणे णवणिधि हुवे, ए रोग कदे णवि होय । गय रह हय वर पालखी, चामर छत्त सिर जोय ॥ णीलवण्ण उवझाय, सीस पाढंता पच्छिम | आराहिजे अंग पुव्व धारंत मणोरम ॥८॥ पच्छिम दिस पंखडीय कमल ऊपर सुहझाण । जोवौ परमाणंद तासु गय देवविमाण ॥ गुरु लघु जे रक्खे विदुर, तिहां नर बहु फल होइ । मन सूधे विण जे जपे, तिहां फल सिद्ध ण जोइ ॥९॥ सव्व | साधु उत्तर विभाग सामला बइठा । जिण धर्म लोय पयासयंत चारित्र गुण जिट्ठा ॥ मण वयण काएहिं जपे जे एके झाणे । पंचवण्ण तिहां णाण झाण गुण एह पमाणे ॥१०॥ अनंत चौवीसी जग हुए होसी अवर अणंत । आदि कोइ जाणी नही, इण णवकारह मंत ॥ एसो पंच णमुक्कारो, पद दिसिअ गणेहिं । सव्व पावप्पणासणो, पद जपणेरेहिं ॥११॥ वायव दिसि झाएह,मंगलाणं च सव्वेसि । पढमं हवइ मंगलं ईसाण पएसिं ॥ चिहुं दिसि चिहुं विदिसे मिलिय, अठ दल कमल ठवेइ । जो गुरु लघु जाणी जपे, सो घण पाव खवेइ ॥१२॥ इण प्रभाव धरणिंद हुओ, पायालह सामी । समली कुमर उपण्ण भिल्ल, सुर लोयह गामी ॥ संबल कंबल वे बलद पहुता देवा कप्पे । सूली दीधो चोर देवथयो णवकारहि जप्पे ॥१३॥ शिवकुमार मण वंछिय करे, जोगी लियो मसाण । सोणापुरसो सीधलो, इण णवकार पमाण ॥ छींके बैठो। चोर एक आकासेगामी । अहि फिट्टि हुइ फूल माल णवकारह णामी ॥१४॥ वाछरुआ चारंत बाल, जल नदी प्रवाहे । बीध्यों कंटहि उयर मंत्र, जपियो मनमाहे ॥ चिंत्या काज सवे सरे, ईरत परत विमास । पालित सूरितणी परे, विद्या सिद्ध आकास ॥१५॥ चोर धाड संकट टले, राजा वसि होवे।। तित्थंकर सो होइ,लाख गुण विधिसूं जोवे॥ साइण डाइण भूत प्रेत, वेताल न पोहवे । आधि व्याधि ग्रहतणी पीडते, किमहि न होवे ॥१६॥ कुछ जलोदर वनग्रन नयनत्रय प्रश्रवणप्रणयन्त्रपूत्रनयनननननननन attaktet-trimlatest-tmlamillentalaintainlai ntnet -tel-salot.
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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