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________________ Intentant totalento foto tataterte teda tentadoitatte tota ● स्तोत्र - विभाग ६६१ ****** UNNIN भय देवो, रक्खउ जिणवल्लहो पहुमं ॥ १० ॥ सो जयउ वद्धमाणो, जिणेसरो दिणेसरोव्य हय तिमिरो । जिणचंदाऽभयदेवा, पहुणो जिणवल्लहा जे अ ॥११॥ गुरुजिणवह पाए, अभयदेव पहुत्त दायगे बंदे । जिणचंद जिणेसर, वडमाण तित्थस्स बुड्ढकए ||१२|| जिणदत्ताणंसम्मं, मण्णंति कुणंति जे य कारिंति । मणसावयसावउसा, जयंतु साहम्मिआ ते वि ||१३|| जिणदत्त - गुणे णाणाइणो, सयाजे घरंति धारिति । दंसिअ सिअ वाय पए, नमामि साहमिआ ||१४| भद्रबाहु स्वामी विरचितं उवसग्गहर नामकं सप्तमं स्मरणम् उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्म घणमुक्कं । बिसहर विस णिण्णासं, मंगल कल्लाण आवासं ॥१॥ विसहर फुलिंगमंतं, कंठे धारेइ जो सया मणुओ । तस्सग्गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ||२|| चिउ दूरे मंतो, तुझ पणामोबि बहुफलो होइ । णर तिरिएसुवि जीवा, पावंतिण दुक्खदोगच्चं ॥३॥ तुह सम्मते लडे, चिंतामणि कप्पपाय वन्भहिए | पार्वति अविग्घेणं, जीवा अयरामरं ठाणं || ४ || इअ संधुओ महायस ! भक्तिन्भर णिन्भरेण हिअएण । ता देव दिज्ज बोहिं भवे भवे पास जिणचंद ||५|| तिजय पहुत्त स्तोत्र तिजय पहुत पयास, अट्टमहापाडिहेर जुत्ताणं । समय क्खित द्वियाणं, सरेमि चक्कं जिणंदाणं ॥१॥ पणवीसा य असीआ, पणरस पण्णास जिणवर ववगय कलि कलुसाणं, ववगयणिद्धंत राग दोसाणं । ववगय पुणव्भवाणं, णमोत्थु देवाहि देवाणं ॥ सर्व्वं पसमइपावं, पुण्णं बढइ णमस माणस्स । संपुण्णचंद वयणस्सकित्तणं अजियसंतिस्स ॥ उवसग्गंतेकमठा, सुरम्मि झाणाउ जोण संचलिओ । सुरणर किण्णर जुवइहि, संधुओ जय पास जिणो ॥ ए अस्समज्झयारे, अट्ठारस अक्खरेहिं जोमंतो। जो जाणइ सो झायइ, परम पयत्थं फुडं पासं । पासह समरण जो कुणइ संतुट्ठ े हिययेण । अट्ठत्तर सयवाहि भयणासइ तस्स दूरेण ॥ ऊपर की दो गाथायें अजित शान्ति स्मरण में और नीचे की तीन गाथाये णमिण स्मरण में। ये गाथायें कइएक पुस्तकों मे पायी जाती है पाठकों के विचारार्थ यहां दे दी गयी है । aka larta tato ln la la la totals in in lalaj in! lolate to lala Let the ge
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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