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________________ starts tots tots tots to रास तथा सज्झाय-विभाग nr ^^^^ ६३६ लाल । भांगा तीन से समयादिकना जाणिये हो लाल, लोक अलोकने लोकालोक वखाणिये हो लाल || लोका० २ || एक थकी छे सत समवाय प्ररूपणा हो लाल, कोडाकोडि प्रमाणक जीव निरूपण हो लाल । वारस विहगणी पिटकतणी संख्या कही हो लाल, सासता अरथ अनन्त की छे एहना सही हो लाल || ए० ३ || सुयखंध अध्ययन उद्देसादिके भला हो लाल, संख्यायें एक एक प्रत्येके गुण निला हो लाल । पद एक लाख चौमाल, सहस तेउत्तरा हो लाल || स० ४ ॥ भाष्य चूर्णि नियुक्ती, कर सोहे सदा हो लाल, सुणतां भेद गम्भीर विपत न होय कदा हो लाल । जेह नमावे अंगकी अन्तरगत हसी हो लाल, जल वरसते हुवे खुसी हो लाल || कुण० ५ ॥ जाग्यो धरम सनेह जिनंद लाल, तजिया शास्त्र मिथ्यात सूत्र जाण्यो खोटो हो लाल । जिम मालती लहे भृङ्ग करीनेन विरहे हो लाल, ईश्वर शिर सुरगंग तभी परि नवि वहे हो लाल || तभी ० ६ ॥ ए प्रवचन निग्रन्थ तणी जुगते बडी हो लाल, सोकर सेलडी द्वाख, थकी पिण मीठडी हो लाल । स्यूं कहिये बहु बात विनय चन्द्र इम कहे हो लाल, एहना सुनने भाव श्रोता अति गहगहे हो लाल || श्रोता० ॥ हिमवन्त परवत सेती निकल्या रे, सूरपन्नत्ती नामे परगरी रे, जेहनी छै जोर, कुण न माहरो हो भगवती सूत्र सज्झाय पंचम अंग भगवती जानिये रे, जिहां जिन वरना वचन अथाह रे । मानूं पर तिख गंग प्रवाह रे ॥१॥ उद्दाम उवांग रे । सूत्रतणी रचना दरिया जिसी रे, महिला अरथ ते सजल तरंग रे ||२|| इहां तो सुयसंध एक अति भो रे, एकसो ए अध्ययन उदार रे । दश हजार उसा जेहना रे, जिहां कीन प्रश्न छत्तीस हजार रे ||३|| पद तो दोय लाख अरथे भरया ऊपर सहस अठ्यासी जान रे । लोकालोक स्वरूपनी वर्णनारे, विवाह पन्नत्ती अधिक प्रमान रे ||१|| करिये पूजा अने पर भावना रे, धरिये सद्गुरु ऊपर राग रे, सुनिये भगवती सूत्र रागसूं रे, तो होय भवसागर नो Annadata trends, coldeded rat tebh Intedind staminal tent off soleste
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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