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________________ Jasvarnakaanakaas Kid रास तथा सज्झाय-विभाग ६३५ को वपु, धनुष पर आयु साथ रे लाला || श्री नमिनाथ जिनेसरू ॥१३॥ दस हजार, वरस तणो, गणधर सत्तर परिमाण रे लाला | वीस इकतालीस सहस क्रम, साधु साधवी संख्या जाण रे लाला ||१४|| इक लख सत्तर सहसनी, तीन लक्ष सहस वलि होय रे लाला । श्रावक संख्या श्राविका, अनुक्रम करि संख्या जोय रे लाला ||१५|| विचरंता भूमंडले, आया शिखर समेत मझार रे लाला | भृकुटी यक्ष गान्धारी सुरी, इक सहस मुनि परिवार रे लाला ॥१६॥ ॥ दोहा ॥ परमेसर श्री पासनी, महिमा जगत विख्यात । शिखर शिरोमणि सहस फण, जग जीवन जगतात ॥ ॥ ढाल ॥ जय जय परम पुरुष पुरुषोत्तम, पारस पारस नाथ जी । सांवरिया साहिब जग नायक, नाम अनेक विख्यात जी ॥१॥ जय जय शिखर समेत शिरोमणि, श्री सांवरिया पास जी । ध्यावे सेवे जे नर तेहनी, पूरे वंछित आस जी ||२|| काशी देश बनारसि नगरी, श्री अश्वसेन नरिन्द जी । वामा माता जग विख्याता, तेहना सुत सुखकन्द जी ||३|| पन्नग लंछन नील वरण छवि, देही शुभ नव हाथ जी । आयु एकसौ बरस प्रमाणे, गणधर दस प्रभु साथ जी ||४|| सोल सहस मुनिवर अरु, श्रमणी कहि अड़तीस हजार जी। भूमंडल विचरे भविजन कूं, बोध बीज दातार जी ||५|| चौसठ सहस लाख इक श्रावक, गुणचालीस हजार जी । तीन लाख श्रावणी संख्या, पार्श्व यक्ष सुर सार जी ॥६॥ वीस जिनेसर मुगते पहुंता, महिमा थइय अपार जी । तिण ए तीरथ प्रगट्यो जगत में, मुक्ति तणो दातार जी ॥७॥ छहरी पाले जे नर भावे, भेटे शिखर गिरिन्द जी । ते नर मन बंछित फल पावे, ए सुरतरुनो कन्द जी ॥८॥ बहुविध संघ ती करे भक्ति, संघ पति नाम धराय जी । सफल करे संपद निज पांमी, जेहनो सुयश सवाय जी ॥९॥ परभव सुरनर संपद पामे, यात्रा करे गह
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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