SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 647
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ATERESEArthatoskakkarARREHEREkattarakhpkhandrakanks रास तथा सज्झाय-विभाग। .instawrt.borstanka-tanki.inra-Titariana-kotatinitikaamtinkakakiriaktarikaawinlinekikahaniaiekinatant-mantrafirkhapatnaki-nkalantinkarikalanationalitie.aor.ka.patrakantarwanamaintakte .... 828 ये उपदेश दियो जिनराज ॥२॥ जग माहे मोटा अरिहन्त देव, चौसठ इन्द्र करे जसु सेव । तेहथी मोटो संघ कहाय, जेहने प्रणमें जिनवर राय ॥३॥ तेहथी मोटो संघवी कह्यो, भरत सुनीने मन गह गह्यो । भरत कहे ते किम पांमिये, प्रभु कहे शत्रुञ्जय यात्रा किये ॥४॥ भरत कहे संघवीपद मुझ, थे आपो हूं अंगज तुझ । इन्द्रे आण्या अक्षत वास, प्रभु आपे संघवी पद तास ॥५॥ इन्द्रे तिण बेला ततकाल, भरत सुभद्रा बिहुंने माल । पहिरावी घर संपेडिया, सकल सोनाना रथ आपिया ॥६॥ ऋषभदेवनी प्रतिमा वली, रत्न तणी दीधी मन रली । भरते गणधर घर तेडिया, शांतिक पौष्टिक सहु तिहां किया ॥७॥ कंकोत्री मूकी सहु देस, भरत तेडायो संघ असेस । आयो संघ अयोध्यापुरी, प्रथम थकी रथयात्रा करी ॥८॥ संघ भक्ति कीधी अति घणी, संघ चलायो शत्रुञ्जय भणी। गणधर बाहुवलि केवली, मुनिवर कोड साथे लिया वली ॥९॥ चक्रवर्तिनी सघली ऋद्धि, भरते साथे लीधी सिद्ध । हयगय रथ पायक परिवार, ते तो कहतां नावे पार ॥१०॥ भरतेसर संघवी कहवाय, मारग चैत्य उधरतो जाय । संघ आयो शत्रुञ्जय पास, सहुनी पूगी मननी आस ॥११॥ नयने निरख्यो शत्रुञ्जय राय, मणि माणिक मोत्यांसंबधाय । तिण ठांमें रहि महोच्छव कियो, भरते आनंद पुरवासियो ॥१२॥ संघ शत्रुजय ऊपर चढ्यो, फरसन्ता पातक झड़ पड्यो । केवल ज्ञानी पगला तिहां, प्रणम्यां रायण रूंख छे जिहां ॥१३॥ केवलज्ञानी स्नात्र निमित्त, ईशानेन्द्र आणी सुपवित्त । नदी शत्रुञ्जय सोहामनी, भरतें दीठी कौतुक भणी ॥१४॥ गणधर देव तने उपदेश, इन्द्रे चलि दीधो आदेश | श्री आदिनाथ तनो देहरो, भरत करायो गिरिसेहरो ॥१५॥ सोनानो प्रासाद उत्तंग, रतनतणी प्रतिमा मनरंग । भरते श्री आदीसरतणी, प्रतिमा थापी सोहामणी ॥१६॥ मरुदेवानी प्रतिमा वली, माही पूनम थापी रली । ब्राम्ही सुन्दरि प्रमुख प्रासाद, भरते थाप्या नवला नाद ॥१७॥ इम अनेक प्रतिमा प्रसाद, भरत कराया गुरु सुप्रसाद । भरत तणो पहिलो उद्धार, सगलोही जाने संसार ॥१८॥ yshrestidevictorialogalorishtikhaobahanslatlabakitanikirliktakDhakasleeEMERIYoutobsantaliatimamtakoralaMMEANALHALKrikatariantanslattestandsise 1 3
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy