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________________ स्तवन-विभाग ॥ श्री दादा साहब की फेरी ॥ पुण्य योग से आई दशा जो भली, जिन कुशल सुरीश्वर सेवा मिली । नवंछित आशा सुफल फली, आनन्द भयो मन रंग रली ||१|| तुम महिमा अगम अपार भला, लिया नाम तिरे पाषाण शिला । पूजे जे चरण कमल चितला, ते पामें ऋद्धि सिद्धि कमला ||२|| गुरु ढूंढ फिर चो मैं जग सगला, तुम सम दाता नहीं और मिला । तुम नाम की देखी अधिक कला, समरत गुरु संकट विकट टला ||३|| गुरुदेव को नाम चित से समरे, मनवंछित कारज सकल सरे । चित धारत आरत तुरत टरे, पूरण निधि से भंडार भरे ||४|| तुम महिमा गुरु गुणवान सदा, जे ध्यावे नहि पावें कष्ट कदा | करके दरशन भई अंग मुदा, चित चाहत सेव करूं मैं सदा ॥५॥ जाके मनमें गुरुदेव रमे, वह नर भव वन में नाहिं भमे । गुरु जानके दीनदयाल तुम्हे, राजा राणा नरनार नमें ||६|| कर्मों के फंद पड़े हैं घने, गुरुदेव न सेव तुम्हारि बने । मेरी करनी अवधारो न मने, दाता मंदिर भर देव धने ॥७॥ करुणानिधि आपको जो ध्यावें, वह नर वंछित फल पावें । कोई कष्ट रोग दुःख नहिं आवें, जो चित सेवित गुरु गुण गावें ||८|| सब भूत और प्रेत पिशाच डरे, डाकिन शाकिन नहि पीड़ करें । जे आपद काल तुम्हें सुमरें, निश्चय सब संकट विकट टरे ||९|| कर्मों के प्रहार कहां लो सहे, गुरुदेव बिना अब किसे कहें। यही चाहत चित चरनमें रहे, सुख संपति दौलत सुमति लहे ॥१०॥ राजत गुरु थुम्भ अधिक नोरे, निजदास कि सब आशा पूरे । दुःख दारिद सकल रहें दूरे, वंछित फल दे चिन्ता चूरे ॥ ११॥ देशे देशे ग्रामे नगरे, गुरु कीरति फैल रही सघरे | जिनचन्द सूरीश्वर पाट वरे, सेवक की आरत सकल हरे || १२ || श्री खरतरगच्छ सढ़ा आगे, नहीं ठहरे भूतादिक भागे । जे सतगुरु के पाये लागे, शुभ भाव दशा उनकी जागे ||१३|| सहु देश नगर अरु पट्टन ग्रामें, देवल सोहे ठामें ठामें । गुरु नाम जपे जे हित कामें, मन वंछित फल वह नर पायें || १४ || जे सतगुरु ध्यान हृदय राखे, वह सेवक शिव सुख फल चाखे । दादा जिन कुशल सुरिन्द साखे, माणक* चाकर इस पद भाखे ॥१५॥ 1 + यह स्तवन सेठ माणकचन्द्र जी महम वालका बनाया हुआ है। ५६१ Yo Yo Yo tool to Yo Yo Yo to to to to to to ta in to io in Yal
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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