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________________ మనంటుందనుడు గుడుండడు ముందుకు నడుమlatitis. lalithasahasranatha vo www.. ............. vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv vvvvvunMuvvvvvvvvvvvv vvvvvvvvv स्तवन-विभाग ५८६ गावे ॥८॥ लहिरयां जल कल्लोल करे, प्रवहण भवसागर मज्झ डरे । बूढता वाहन जे समरे, ते आपद निश्चय सूं उवरे ॥९॥ खड़ खड़ खड़ग प्रहार वहे, सौदामिनि जिम सम शेर सहे । कुशल कुशल गुरु नाम कहे, ते * खेम कुशल रण मज्झ लहे ॥१०॥ धुंभ सकल परचा पूरे, श्री नागपुरे संकट चूरे । मंगल और अधिके नूरे देराउर भय टाले दुरे ॥११॥ वीरमपुर वाने सुधरे, खम्भायत पुर विक्रम नयरे । जिनचन्द्र सूरि पाटे पवरे, जसु कीरति मही मण्डल पसरे ॥१२॥ पूरब पश्चिम दक्षिण आगे, उत्तर गुरु दीपे सोभा जागे। दह दिशि जन सेवा मांगे, श्री खरतरगच्छ नी महिमा जागे ॥१३॥ पुर पट्टण जनपद ठामे, गाई जे कुशल नयर गामे । पूजे जे नर हित कामे, ते चक्रवति पदवी पामे ॥१४॥ श्री जिन कुशल सूरि साखें सेवक जन ने सुखिया राखें। समरयां गुरु दरशण दाखें, श्री साधु कीरति पाठक भाखें ॥१५॥ श्री जिन कुशल मूरिजी उत्पत्ति स्तवन रिसह जिनेसर सो जये, मंगल केलि निवास । वा सब वंदिय पय कमल, जग सहु पूरे आस ॥१॥ चंद कुलम्बर पूनम चंद, वंदो श्री जिन कुशल मुनिंद । नाम मन्त्र जसु महिम निवास, जो समरेतसु पूरे आस॥२॥ मरु मंडल समियाणो गाम, धण कण कंचन अति अभिराम । जिहां बसे जिल्हागर मंत्र, जैतसिरी जसु धरणी कलत्र ॥३॥ जसु तेरे से तीसे जम्म, सैंताले सिरि संजम रम्म । पाटण सतहत्तरे जसु पाट, निव्यासिये तसु * सुरगे वाट ॥४॥ भूमंडल सरगें पायाल, अचिराचिर युग इण कलिकाल । प्रभु प्रताप नवि माने सोय, मैं नवि नयणें दीठो जोय ॥५॥ निरधन लहे धन धन्न सुवन्न, पुन्नहीन बहु पामें पुन्न । असुखी पामें सुख संतान, एक मना करतां गुरु ध्यान ॥६॥ गुरु समरन आपद सवि टले, सयल शांति सुख संपति मिले । आधि व्याधि चिंता संताप, ते छंडी नवि मंडी व्याप ॥७॥ पाप दोष नवि लागे तिहां, गुरु समरण उत्कंठा जिहां । सेवंतां 1 सुरतरु नी छांह, निश्चय दारिद्र मेटे वांह ॥८॥ विषहर विषनर विष atelmaanadaantarokner-ldakokanatmtathibananakariwarlinliolankielioneletelstomulirlssistafat-lastet-tatistialishkar-kinbile lalatakalakittalionlinetatitishkekatathabalektrotatmlafaulbulbhbatikaner Sutrotalbhabhishekolasaliliatiladarlalalalisha tohatolasarilankoolatakiskehelickinlishaliokolatikalaolestealistadolesalelkalayakalinsahitholestosteliaahelickashatiriktelalosartattatoloht.kahbhkiladka ladkakirilathkashlokas
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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