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________________ ...... ५८३ wwwanimarnmare BLAkashstraliaakaastalishakikatestashakakatalokliceKXYElectr *ENEMAKEYadalalalY स्तवन-विभाग ए जिन शासन रीत तो ॥४६॥ खमिये अने खमाविये सहेलडी, एहिज धर्म नो सार तो । शिवगति आराधन तणो सहेलडी, ए त्रीजो अधिकार तो ॥४७॥ मृषावाद अहिंसा चोरी सहेलडी, धन मूर्छा मैथुन्न तो। क्रोध मान माया तृष्णा सहेलडी, प्रेम द्वेष पैशुन्न तो ॥४८॥ निन्दा कलह न। कीजिये सहेलडी, कूडा न दीजे आल तो। रति अरति मिथ्या तजो सहेलडी, माया मोस जंजाल तो ॥४९॥ त्रिविध त्रिविध बोसराविये सहेलडी, पापस्थान अठार तो। शिवगति आराधन तणो सहेलडी, ए चौथो अधिकार तो ॥५०॥ (हवे निसुणो इहां आविया ए) जनम जरा मरणे करी ए, ए संसार असार तो। करया कर्म सहु अनुभवे ए, कोइय न राखणहार तो ॥५१॥ शरण एक अरिहंत नं ए, शरण सिद्ध भगवंत तो । शरण धर्म श्री जैन नो ए, साधु शरण कुलवंत तो ॥५२॥ अवर मोहि सवि परिहरि ए, चार शरण चित्त धार तो। शिव गति आराधन तणो ए, ए पांचमो अधिकार तो ॥५३॥ आभव परभव जे करया ए, पाप कर्म केइ लाख तो। आत्म साखे निंदिये ए, पडिक्कमियें। गुरु साख तो ॥५४॥ मिथ्यामत वर्ताविआ ए, जे भाख्या उत्सूत्र तो। कुमति कदाग्रह ने वसे ए, वलि उत्थाप्या सूत्र तो ॥५५॥ धड्या धडाव्यां । जे धणा ए, घरटी हल हथियार तो। भव भव मेली मूंकिया ए, करतां जीव संहार तो ॥५६॥ पाप करी ने पोखिया ए, जनम जनम परिवार तो। जन्मांतर पोहतां पछी ए, कोइय न कीधी सार तो ॥५०॥ आभव परभव जे कर-या, इम अधिकरण अनेक तो। त्रिविध त्रिविध वोसराविये ए, आणी हृदय विवेक तो ॥५८॥ दुष्कृत निंदा इम करी ए, पाप करया परिहार तो । शिवगति आराधन तणो ए, ए छठो अधिकार तो ॥५९॥ (आदि तूं जोइने आपणी) धन धन ते दिन माहरो, जिहां कीधो धर्म । दान शीयल तप 1 आदरी, टाल्यां दुष्कर्म ॥ ध० ६० ॥ सेजादिक तीर्थ नी, जे कीधी यात्र। iarchahabhakathackebarakshathok adatarcalakathakathamaraGhakti k arKAMREKALAKAMANAKANIYAKHAKISSAIIALLY
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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