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________________ ......DONATAUTATIrladataalakarmagarkoolmatalaptotoesaabhbhaktatastetohtotstatekahtatatastamittetsukata ५७६ . . , . Niwanamukwwwwwww --222 vvvvv प्रत्रचन्तनमननयत्रतत्रत्रत्रतत्रत्रतत्र तत्र 2 22Daineerinlalanoclataphalatastesa जैन-रत्नसार वमन विरेचन कृमि पातन आम्बिल इक एक जीवाणी ढोलंता दोय उपवास विवेक ॥१०॥ संकल्पादिक एक पंचेन्द्री उपद्रव होइ, दोइ त्रिण आठ दसे उपवासे आलोयण जोइ । बहु पंचेन्द्री उपद्रव छठ अठमे दस बीस, चिहुं प्रकारे चढ़ती आलोयण सुन ले सीस ॥११॥ पंचेन्द्री ने लकड़ी प्रमुख कीध प्रहार, एकासण आम्बिल उपवास ने छह विचार । साधु समक्षे लोक समक्षे राज समक्ष, कुड़ा आल दिया दुइ चौथरु छठ प्रत्यक्ष ॥१२॥ उपवास दस दण्डायां तेम बीस इक लख असी सहस नवकार गुणो तजि रीस । पख चौमासा बरस लग, इक त्रिण दस उपवास । अधिको क्रोध करे तो आलोयण नहिं तास ॥१३॥ सुआवड नां दोष कियां गुरु ऊपर रोस, जीव विराधन कीधां बहु असति ने पोस । करिय दुवालस बार हजार गुणो नवकार, मिच्छामि दुक्कड़ देइ आलोवो वारोवार ॥१४॥ ॥ ढाल ॥ बेकर जोड़ी ताम। बिन कीधा पञ्चक्खाण, बिन दीघां वन्दना, पडिकमणा विध पात रे ए । अणोझा ने असिझाय, तिहां अविधे भण्या, इक इक आम्बिल आचरे ए ॥१५॥ गंठसी ने एकत्र, निवि आम्बिल, भांगे आलोयणा इमें ए। एक पांच षट् आठ नवकरवालीय, गुण नवकार अनुक्रमे ए ॥१६॥ उपवास भंग उपवास आम्बिल ऊपरां अधिको दण्ड बखाणिये ए । पांचम आठम आदि, भंग कियां बली, फिर ग्रही पातिक हाणीये ए ॥१७॥ ऊखल, मूसल, आग चूल्हे, घरट्टिये, दीधे आठम तप करे ए। मांगी सुई दीध, कतरनी छुरी, आम्बिल चढ़ता आदरे ए ॥१८॥ जीव करावे युद्ध, रात्री भोजन जल, तिरणो खेलण जुओ ए । पापतणां उपदेश परद्रोह चिन्तव्या, उपवास इक इक जूजुवा ए ॥१९॥ पनरे करमादान, नियम करी भंग, मद्य मांस माखण भण्या ए। आलोयण उपवास, संकप्पादिक, चिहुं भेदें चढ़तां लिख्या ए ॥२०॥ बोल्या मिरषावाद, अदत्तादान त्यू, जघन्य एकासण जाणिये ए। अति उत्कृष्टि एण, जांण आलोयण, उपवास दस दस आणिये ए ॥२१॥ n bhoschlorothiasatrahksitosEKHolpostinkalsolute पत्र T ERTAITERALEXANEJARIET-34- 3BSTI
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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