SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 574
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ aslo To Tag 18 2903810 15.19 155 15 10 10 19 Jesta, Jonla ५५० जै-रत्न गणधर जिण चारित्री, नाण श्रुत तिथि भूपो जी । ए पद निज भवि भावे, सेवे तेहिज ब्रह्म सरूपो जी ॥ २॥ दोय सहस गुणनो प्रत्येकें, चार सया उपवासो जी । द्रव्य भावसे विधि परकासे, तीर्थकर पद खासो जी ॥ तीजे भव वर वीस थानक नी, सेव करे भव्य प्राणी जी । समकित बीजे जे निज आतम, आरोपे चित्त आणी जी ||३|| सुरतरु सम तप फल है मोटो, श्री सूर देवि सहाई जी । खरतर गच्छ जिन आज्ञा धारी, पटोधर वरदाई जी ॥ जिन सौभाग्य सूरिन्द पसाये, हंस सूरिंद गुण गावे जी। संघ सकल कूं सांनिधकारी, मन वंछित फल पावे जी ॥४॥ रोहिणि चैत्यवन्दन रोहिणि नक्षत्र रुचे, चन्द्र को प्यारो । सत्ताइसवें दिन आय, इस तप को धारो ॥१॥ चित्रसेन की स्त्री, रोहिणि व्रत को मानें, सुख पायो कुमरि, दुःख को नहिं जानें ||२|| इण विधि तप को सेबतें, धारें प्रभु तुम ज्ञान | श्री मुनि सुव्रत बखानते, पावें पद निर्वान ||३|| इस तप को आराधतां तूटे जग का पास । श्री रत्नसूरि के शिष्य, मोती चरणन का दास ||४|| रोहिणी तप का स्तवन I शासन - देवता सामणी ए मुझ सानिध कीजे, भूलो अक्षर भगति भणी समझाई दीजे । मोटो तप रोहिणी तणो ए जिनरा गुण गाऊं, जिम सुख सोहग सम्पदा ए, वंछित फल पाऊं || १ || दक्षिण भरतें अंगदेश छे चम्पा - नगरी, मघवा राजा राज्य करे तिण जीता वयरी । पाट तणी राणी रूवड़ी ए लखमी इण नामें, आठ पुत्र जाया जिणे ए मनमें सुख पानें ॥२॥ रोहिणी नामे कन्यका ए सब कूं सुखकारी, आठों पुत्रां ऊपरां ए तिण लागे प्यारी । वाधी चन्द्रतणी कला ए जिम पख उजवाले, तिम ते कुमरी धाय माय पांचे प्रतिपाले ॥३॥ कुमरी रूपे रूबड़ी ए घर अंगण बैठी, दीठी राजा खेलती ए. ति चिन्ता पैठी । तीन भुवन बीच एहबी ए नहीं दुजी नारी, रम्भा पउमा गवर गंग इण आगल हारी ||४|| पुरुष न दीसे कोई इसो
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy