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________________ ప్రముడు తన నడుమును మనము स्तवन-विभाग Bhimashshindi.haldhakKARREShahssksrekkhahak ॥ ढाल॥ लाख कोडि वरसां लगे, नरके कटता रीव रे। गौतम गणधारी अट्ठम तप करताथकां, सही नरक निवारे जीव रे ॥ गो० २३ ॥ नरके वरस कोडी लाख ही, जीव लहे तिहां दुक्ख रे । ते दुःख अट्ठम तप हुँती, दुर करे पामी सुक्ख रे ॥ गो० २४ ॥ छेदन भेदन नारकी, कोड़ाकोडी वरसोई रे । कुगति कुमति ने परिहरो, दसमें एतो फल होइ रे ॥गो०२५॥ नित फासू जल पीवतां, कोडा कोडि वरसनो पाप रे। दूर करे खिण एक में, निश्चय होय निःपापरे ॥ गो० २६ ॥ वलिय विशेषे फल कह्यो, पांचम करे उपवास रे। पामें ज्ञान पांचे भला, करता त्रिभुवन परकास रे॥ गो०२७॥ चवदह तप विधि करे चवदह पूरब धार रे । इम अनेक फल तणां कहतां बलि नावें पार रे॥२८॥मन वचने काया करी, तप करे जे नरनारि रे।इग्यारे वरस एकादशी, करतां लहे भव पार रे ॥गो० २९॥ आठम तप आराधतां, जीव न फिरे संसार रे । अनंत भावना पाप थी, छूटे जीव निरधार रे ।। गो० ३० ।। तप हुँती पापी तरया, निस्तरियो अरजुन माल रे। तप हुती दिन एकमें, शिव पाम्यो गज सुकुमाल रे ॥ गो० ३१ ॥ तपने फल सूत्रे कह्या, पच्चक्खाण तणा दस भेद रे । अवर भेद पिण छे घणा, करतां छेदे त्रय वेद रे॥ गो० ३२॥ कलश पञ्चक्खाण दस विध फल, प्ररूप्या महावीर जिण देव ए। जे करे भवियण तप अखंडित, तासु सुर पय सेव ए ॥ संवत् निधि गुण अश्व शशि, वलि पोष सुदि दशमी दिने । पदम रङ्ग वाचक शीश गणिवर, रामचन्द्र तप विधि भणे ॥३३॥ दश पच्चक्खाण स्तुति दश पच्चक्खाण करतां कबहूं नरक नहिं जाय, सुध मन से करिये आतम संयम थाय । जो कोई धारे शील सहित सुखकार, सूरज जप तप से पामें मोक्ष दुवार ॥१॥ ANIMARightinkaliporanARisiosharlasniliancistanilariasinilosbahsacheenslandicYI ndialiMAME-TolalitAEYNAY AXKINAYANATH
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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