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________________ Yalat i nacai-Bhaal-CollariasthaiklnahaG-RAKAkkalkatae स्तवन-विभाग ननवभत्रनयनपत्रमनप्रणयन्त्रन्त्र-मन्त्र नमानयत्रचन्चनप्रवचत्रवनमन्त्र HAKHAamlahabatolaalaykhatatahshobhosalbokko ka l akatalath ॥१०॥ देहरे स्नान करीजे वली, पोथी पूजीजे मन रली । मुक्तिपुरी कीजे दुकड़ी ॥ मग० ११ ॥ मौन इग्यारस मोटू पर्व, आराध्यां सुख लहिये सर्व । व्रत पञ्चक्खाण करो आखड़ी ॥ मग० १२ ॥ जेसल सोल इक्यासी समें, कीबूं स्तवन सहू मन गमे । समय सुन्दर कहे द्याहड़ी ॥ मग० १३॥ चउदह गुणठाणों का स्तवन सुमति जिणंद सुमति दातार, वंदु मन सुध बारम्बार, आणी भाव अपार । चवदे गुण थानक सुविचार, कहिस्यूं सूत्र अरथ मन धार, पामें जिम भव पार ॥१॥ प्रथम मिथ्यात कह्यो गुण ठाणों, बीजो सास्वादन मन आणों, तीनो मिश्र वखाणो। चौथो अविरत नामनो, देश विरति पंचम परमानो, छटो प्रमत्त पिछा५ ॥२॥ अप्रमत्त सत्तम लही जे, अष्टम अपूरव करण कहीजे, अनित्त नाम नवम्म । सूखम लोभ दसम सुविचार, उपशांत मोह नाम इग्यार, खीण मोह बारम्म ॥३॥ तेरम संयोगी गुणठान, चउदम थयो अजोगी नाम, वरणू प्रथम विचार । कुगुरु कुदेव कुधर्म बखाणे, ए लक्षण मिथ्या गुण ठाणे, तेहनां पांच प्रकार ॥४॥ ( सफल संसारनी ) जेह एकांत नय पक्ष थापी रहे, प्रथम एकांत मिथ्यामती ते कहे ॥५॥ जैन शिव देव गुरु सहु नमे सारखा, तृतीय ते विनय मिथ्यामती पारिखा ॥ सूत्र नवि सरदहे रहे विकलप घणे, संसयी नाम मिथ्यात चौथो भणे ॥६॥ समय नहिं काय निज धंद राता रहे, एह अज्ञान मिथ्यात्व पंचम कहे । एह अनादि अनंत अभव्यने, करिय अनादि थिति अंत सुभव्यनें ॥७॥ 5 जेम नर खीर घृत जीमने वमें, सरस रस पय वलि स्वाद केहवो गमें । चौथ पंचम छठे ठाण चढ़ने पड़े, किणहि कषाय वस आय पहले अड़े ॥८॥ * रहे विच एक समयादि षट् आवली, सहिय सासादने थित इसी सांभली । 3 हिव इहां मिश्र गुण ठाण तीजो कहे, जेह उत्कृष्ट अंतर मुहूरत लहे ॥९॥ (वे करजोड़ी वाम ) पहिला चार कषाय सम कर समकिती, केतो सादि मिथ्यामती ए। मययनपश्रममनप्रणयन्त्रण " i bahibalhotohtalotatotoninhathlalithaathhilaiba hota halateletailsina Tamaha TaTeet *"*1*14011035 68
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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