SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ఇతర సhttstatistictatotalitariడండదడండవండువందడదడుడుడiడదండడండడనడు २७ vedurimaanananwww Blukatrintinutetentirtantantrtantiatelialetariankaratahksimlatastestantroktantbhhbhataksharthakkshish Girlasahwaakkartabdkothavadatatantalistosohtakalakadiladakiokanate सूत्र विभाग उपकरणको मस्तक (शिर) के नीचे रखा था पासमें लिये हुए आहार (भोजन) निहार ( पाखाना) किया, ज्ञान द्रव्य भक्षण करनेवाले की उपेक्षा की, ज्ञान द्रव्य की सार सम्भाल न की, उल्टा नुकसान किया, ज्ञानवन्त के ऊपर द्वेष किया, ईर्षा की, तथा अवज्ञा आशातना की, किसी को पढ़ने गुणने में विघ्न डाला, अपने जानपने का मान किया । मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान तथा केवल ज्ञान इन पांच ज्ञानों में श्रद्धा न की। गूंगे, तोतले की हंसी की, ज्ञान में कुतर्क की, ज्ञान के विपरीत प्ररूपणा की । इत्यादि ज्ञानाचार सम्बन्धी जो कोई अतिचार पक्खी दिवस में सूक्ष्म या बादर जानते अजानते लगा हो, वह सब मन, वचन, काया कर मिच्छामि दुक्कडं । दर्शनाचार के आठ अतिचार-"निस्संकिय निक्कंखिय, निन्वितिगिच्छा अमूढ़ दिहि। उववुह थिरीकरणे,वच्छल पभावणे अह ॥३॥"देवगुरु धर्म में निःशंक (विश्वास) न हुआ, एकान्त निश्चय न किया । धर्म सम्बन्धी । फल में संदेह किया । चारित्रवान् साधु साध्वी की जुगुप्सा (निन्दा) की। मिथ्यात्वियों की पूजा प्रभावना देख कर मूढ़ दृष्टिपना किया। कुचारित्री को देख कर चारित्र वाले पर भी अभाव हुआ। संघ में गुणवान की प्रशंसा न की । धर्म से पतित होते हुए जीव को स्थिर न किया । साधर्मी का हित न चाहा । भक्ति न की, अपमान किया, देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, साधारण द्रव्य की हानि होते हुए उपेक्षा की । शक्ति होने पर भले प्रकार सार सम्भाल न की । साधर्मी से कलह क्लेश करके कर्म बन्धन किया । मुखकोश बांधे बिना वीतराग देव की पूजा की । धूपदानी, खस कूची, कलश आदि से प्रतिमाजी को ठपका लगाया । जिनबिम्ब हाथ से गिरा । श्वासोश्वास लेते आशातना हुई। जिन मन्दिर तथा पौषधशाला में थूका तथा मलश्लेश्म (कफ) किया । हँसी मश्करी की, कुतूहल किया जिन मन्दिर सम्बन्धी चौरासी आशातनाओं में से और गुरु महाराज सम्बन्धी तेतीस आशातनाओं में से कोई आशातना हुई हो। स्थापनाचार्य हाथ से गिरे हों या उनकी पडिलेहन न की हो । गुरु के वचन को मान BRabelly fatiblettola.larlaladiolarnithelast-dosladiolorlaloosinitirlinlahladlondialistulatintabilalitasaliilasaglosiniloitatishtainlaintainsthaileelasantipliesaloslestosthalithalirtnilionsailitilaslutaratahiktailslostoslanita thtoilet-elenatakarletelnotos
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy