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________________ रतवन-विभाग w wwwwwwwwwwwwww Pri.irtinianimismirth-la-strinaateinathtuntstalkin.tandafortant Intmletstandartantulanielholariratnamalantatat torintinlaintsanle ३ खरी । मेरे० १ ॥ परम जोत प्रभु सिद्ध शिला पर, परमातम निज ध्यान ! धरी ॥ मेरे० २ ॥ मोहन रंग भरयो रंग शिवपुर, अजर अमर पद सुक्ख करी ॥ मेरे० ३॥ होरी सांवरो सुखदाई, जाकी छवि वरणी न जाई ॥ सांव० ॥ श्री अश्वसेन । वामा नन्दन की, कीरत त्रिभुवन छाई । सम्मेत शिखरगिरि मंडन प्रभुको, देख दरस हरखाई हृदय मेरो अति हुलसाई ॥ सांव० १॥ आज हमारे सुरतरु प्रगट्यो, आज आनन्द बधाई । तीन भुवन को नायक निरख्यो, प्रगटी पूर्व पुण्याई सफल मेरो जनम कहाई ।। सांव० २ ॥ प्रभु के दरस सरस बिन पाये, भव भव भटक्यो में भाई । अब प्रभु चरण शरण चित चाहत, बाल कहे गुण गाई ॥ सांव० ३ ॥ स्तवन रंग मच्यो जिनद्वार रे, चालो खेलिये होरी। पास प्रभू दरबार रे, फागुन के दिन चार रे ॥ कनक कचोरी केसर घोरी, पूजो विविध प्रकार रे ॥ चा० १ ॥ कृष्णागर की धूप घटत है, परिमल महके अपार रे ॥ चा० ई २॥ लाल गुलाल अबीर उड़ावत, पासजी के दरबार रे ॥ चा० ३ ॥ भर पिचकारी गुलाब की छिड़को, वामा देवी कुमार रे ॥ चा० ४॥ ताल मृदङ्ग ३ वीण ढफ बाजे, भेरी भुंगल रणकार रे । चा० ५॥ सब सखियन मिल नाटक करके, गावत मंगल सार रे ॥ चा० ६ ॥ रत्न सागर प्रभु भावना भावे, मुख बोले जयकार रे ॥ चा० ७ ॥ लावनो आगडदं आगड बाजे चौघडा, सवाई डंका साहेब का । छननन छननन आवाज होती, महल बनाया गगनों का ॥ कल्याण पारसनाथ । नामका, नित नित बाजे चौघड़ा । तीन लोकमें सच्चा साहिब, पार्श्वनाथ अवतार बड़ा ॥१॥ बनारसी नगरीमें तेरा जनम है, माता वामा के नन्दा ।। hahbi.kibabhbiharhi satoh aahhhhhhiphalosbhbhalafothla khulalah kte nola thaphalatalathkhthla sabhalatatalathorthlalitantalia- . ..... .. . .
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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