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________________ Yocks to tootouto touto Yo Yo took to trek toto to to Konta ५१८ JUU vv %%%%%% जैन-रत्नसार vvvw ~ .vwwwwww 6 to to to to to tattato to to to to teoloo wwwww wwww wwww सादि अनन्त लाल रे । भाषक लोकालोक के, ज्ञायक ज्ञेय अनन्त लाल रे || श्री० २ ॥ इन्द्र चन्द्र चक्कीसरूं, सुर नर रहे कर जोड लाल रे । पदपङ्कज सेवे सदा अणहुंता इक कोड लाल रे ॥ श्री० ३ ॥ चरण कमल पिंजर बसे, मुझ मन हंस नितमेव लाल रे । चरण शरण मोहि आसरो, भव भव देवाधि देव लाल ॥ श्री० ४ ॥ अधम उधारण छो तुम्हें, दुर हरो भव दुःख लाल रे । कहे जिनहर्ष दया करी, दीजो अविचल सुःख लाल रे || श्री० ५ ॥ सीमन्धर जिन स्तवन सुणो चन्दाजी, सीमंधर परमातम पासें जावजो । मुझ बीन तड़ी, प्रेमधरीनें इण परे तुम संभलावजो ॥ जे तीन भुवन ना नायक छे, जस चौसठ इन्हें पायक छे, ज्ञान दरसण जेहनें क्षायक छे ॥ सुणो० १ ॥ जेनी कञ्चनवर्णी काया छे, जस धोरी लंछन पाया छे । पुण्डरीक नगरी नो राया छे || सुणो० २ ॥ वार परषदा मां हे विराजे छे, जस चौतीस अतिशय छाजे थे । गुण पैंतीस वाणियें गाजे छे || सुणो० ३ ॥ भवि जननं ते पड बोहे छे, तुम अधिक शीतल गुण सोहे छे । रूप देखि भविजन मोहें छे ॥ सुणो० ४ ॥ तुम सेवा करवा रसियो छू, पण भरत मां दुरे वसिओ छूं । महा मोहराय में फसियो छू || सुणो० ५ ॥ पण साहिब चित्त मा धरियो छे, तुम आण खड़ग कर ग्रहियो छे । तब कांइक मुझ थी डरियो छे सुणो० ६ || जिन उत्तम पूठ हवे पूरो, कहे पद्म विजय थाऊं शूरो । तो वाधे मुझ मन अति नूरो || सुणो० ७ ॥ सिद्धाचल स्तवन सिद्धाचल गिरि भेया रे, धन्य भाग्य हमारा । ए गिरिवर नी महिमा मोटी, कहतां न आवे पारा । रायण रूख समोसरया स्वामी, पूरव नवाणूं चारा रे ॥ धन्य सिद्धा० १ ॥ मूलनायक श्री आदि जिनेश्वर, चौमुख प्रतिमा चारा । अष्ट द्रव्य सूं पूजो भावें, समकित मूल आधारा रे ॥ धन्य सिद्धा० २ || दूर देशान्तर थी हूं आयो, श्रवण सुणी गुण तोरा । पतित भूम
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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