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________________ भूपत्र ५१० जैन-रसार करूं । एह बीनती अश्वसेन वामादेवी अङ्गज, ध्यान मन तोरा धरूं, करि कृपा स्वामी सीस नामी सदा तुह्य सेवा करूं ||१७| कलश इम स्तव्यो थम्भण पास सामी, नगर श्री खंभाइते । जिम सुगुरु श्री मुख सुणी वाणी, शास्त्र आगम सम्मतें । ए आदि मूरत सकल सूरत सेवतां सुख संपए । मन भाव आणी लाभ जाणी, कुशल* लाभ यं पये ॥१८॥ श्री गौड़ो पार्श्व जिन वृद्ध स्तवनम् वाणी ब्रह्मा वादिनी, जागे जग विख्यात । पास तणां गुण गावतां, मुझ मुख वसज्यो मात ||१|| नारंगे अणहल पुरे, अहमदाबादें पास | गौडीनो धणि जागतो सहनी पूरे आस ||२|| शुभ बेला शुभ दिन घड़ी, मुहूरत एक मंडाण । प्रतिमा ते इह पासनी, थई प्रतिष्ठा जाण ॥३॥ ॥ ढाल || गुणहि विशाला मंगलिक माला, वामानो सुत सांचो जी । धण कण कंचण मणि माणक दे, गौडीनो घणि जाचो जी ||४|| अणहिल पुर पाटण मांहे, प्रतिमा, तुरक तणें घर हुंती जी । अश्वनी भूमि अश्वनी पीडा, अश्वनी वालि विगूती जी ॥ गु० ५ ॥ जागंतो यक्ष जेहने कहिये, सुहनो तुरकनें आपे जी । पास जिणेसर केरी प्रतिमा, सेवक तुझ सन्तापे जी ॥ गु० ६ ॥ प्रह ऊठीने परगट कर जे, मेघा गोठीने दीजे जी अधिकम ले जे ओछोम ले जे, टक्का पांच सौ लीजे जी ॥ गु० ७ ॥ नहिं आपिस तो मारीस मुरडीस, मोर बंध बंधास्ये जी । पुत्र कलत्र धन हय हाथी तुझ, लच्छि धणी घर जास्ये जी ॥ गु० ८ ॥ मारग पहेलो तुझने मिलस्ये, सारथवाह जे गोठी जी । निलवट टीलो 'चोखा बेड्या, वस्तु वहे तसु पोठी जी ॥ गु० ९ ॥ * यह स्तवन कुशललाभ सूरिजी महाराज का बनाया हुआ है।
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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