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________________ स्तवन-विभाग AAAAAAAAAAAAAAAAAAA ramme NAA l ahan Halaletsti.lat-lotatohtoliyantali.lutalathi.lathklakala bhatijintakarlelrialoriefinirelesladkaolatestantialatker. आतम शक्ति जगायो रे ॥ ज० ॥ अविनाशी अविचल अधिकारी, शिववासी जिन रायो रे ॥ ज० २ ॥ इत्यादिक गुण श्रवणे निसुणी, हूं तुज चरणे आयो रे ॥ ज० ॥ तूं रीझावण हेतू ततखिण, नोटक खेल मचायो | रे ॥ ज० ३॥ काल अनन्त रह्यो एकेन्द्री, तरु साधारण पामी रे ॥ ज० ॥ वरस संख्याता वलि विकलेन्द्री, वेष धर या दुःख धामी रे ॥ ज० ४ ॥ सुरनर तिरि बलि नरक तणी गति, पंचेन्द्री पणो धारयो रे ॥ ज० ॥ चौवीसे दंडक मांहि भमतो, अब तो हूं पिण हार यो रे ॥ ज० ५॥ भव नाटक नित प्रति कर नव नव, हूं तुझ आगल नाच्यो रे ॥ ज० ॥ सम रथ साहिब सुरतरु सरिखो, निरखी तुझने जाच्यो रे ॥ ज० ६ ॥ जो मुझ 1 नाटक देखी रीझिया तो मुझे वंछित दीजे रे ॥ ज० ॥ जे नवि रीझातो मुझ भाखो, वलि नाटक नवि कीजे रे ॥ज०७॥ लालच धरि हूं सेवा सारूं, तूं दुःखड़ा नवि का रे ॥ ज० ॥ दाता सेती सुंब भले रो, बहिलो उत्तर आपे रे ॥ ज० ८ ॥ तुझ सरिखा साहिब पिण म्हारे, जो नवि कारज सारो रे ॥ ज० ॥ जो मुझ करम तणी गति अवली, दोष न कोई तुम्हारो रे॥ ज० ९॥ दीनदयाल दया करि दीजे, शुद्ध समकित सहि नाणी, रे॥ ज० ॥ सुगुण सेवक ना वाञ्छित पूरो, ते हिज गुण मणी खाणी रे ॥ ज० १० ॥ वर्ष अठारे गुणतालीसे, जेठ सुदी सोमवारो रे ॥ ज० ॥ लालचन्द प्रतिपद दिन भेट्या, बीकानेर मझारो रे ॥ ज० ११ ॥ अजित जिन स्तवन (मारूं मन मोह्यं रे श्री विमला चले रे) पंथीडूं निहालूं रे बीजा, जिन तणो रे, अजित अजित गुण धाम । जे ते जी त्यारे तेणे हूं जीतो रे, पुरुष किस्यूं मुझ नाम ॥ पंथीडूं. १॥ चर्म नयण करी मारग जोव तोरे, भूलो सयल संसार । जेणे नयणे करि । मारग जोइये रे, नयण ते दिव्य विचार ॥ पंथीइं० २॥ पुरुष परम्पर अनु1 भव जोवतां रे, अंधो अंध पुलाय । वस्तु विचारे रे जो आगमें करी रे, है चरण धरण नही ठाय ॥ पंथीइं. ३॥ तर्क विचारे रे वाद परम्परा रे, 5) kola bat bolnik, lol. In ko load or In Brolio ki ta ka Ii In In Kolosy ludz ko bo bo bolo tools facto ), Krukouky Koliko kolis Bukauti kurbolmukastado kasi ukin li ho b bolumul tokio tail ba to to. Izda loba bordo in da bo tubete In In lo bolo bobo boboto bo dalo!!!! niketathiantatatatatute totationtatohtot.ful.tatulatotalotsyatharashtratithi
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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