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________________ त्यवन्दन-विभाग ॥ ज्ञान पञ्चमी का चैत्यवन्दन || मकल वस्तु प्रति भास भानु निरमल सुख कारण, सम्यग दर्शन पुष्ट हनु भवजल निधि तारण । संयम तप आनंद कंद अज्ञान निवारण, भार विकार प्रचार ताप, तापित जन ठारण ॥१॥ स्याद्वाद परिणाम धर्म परिणति पडिबोहन, साहु साहूणी संघ सर्व आराधन सोहन । मोह तिमिर विध्वंस सूर, मिथ्यात्व पणासण, आतम शक्ति अनंत शुद्ध, प्रभुता परकासन ॥२॥ मति श्रुति अवधि विशुद्ध नाण, मनपर्यव केवल, भेद पचास क्षायोपसमिक, एक क्षायक निर्मल दो परोक्ष, प्रथम तिहां दुगपरतक्ष दिसत सकल प्रत्यक्ष प्रकाशभास, ध्रुव केवल अपरमित्त ॥३॥ धर्म सकल नो मृल शुद्ध विपदी जिन भावं, बाहिर अंग प्रधान खंध गणधरमु प्रकासे ॥ शाग्वा श्री नियुक्ति भाग्य पडि शाखा दीप, चरण टीका . पत्र पुष्प मंशय सत्र जीप ॥ell ए पंचांगी सारबोध कयो जिन पंचम अंगे, नंदी अनुयोग द्वार मान्य मानो मनरंगे ।। वीर परम पद जीत अनुभव उपगारी, अभ्याली आगम निम्पम सुखकारी ॥५॥ मोह पंक हरनीरसम सिद्धान्त अवाधे, दय चन्द्र आणा सहित नय भंग अगाधे ॥ ए श्रुत ज्ञान मुहामणी सकल मोक्ष मुग्वकंद. भगते सेवो भविकजन पामी परमानंद ॥६॥ ॥ द्वितीया चैत्यवन्दन ॥ गग टेप को मिटा लिये, बीज दिवस मुग्पकार । दुविध धर्म जिनबर की, माधु धावक मार ॥१॥ दाय बग्स दोय मानमां. उत्कृष्ट जीवा व । आन गेटको दूर करी, आगधी शुभ भाव ॥२॥ भावी निन निन गायना. मुनि. आगधन भाव । दृज निधि आगधया, माणक कांविश ॥ पनी चन्यवन्दन ॥ नन पनि दिन. प्रभु श्री नमिनाय । पनाम कर कन्या पी. रन नाय |३|| पांच ज्ञान आर्थिय. गनि नि भधि जान ! मा नाय को पंचमी का जन 10 बालगने गर्ग T! श्री शान्तिमा र tri"
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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