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________________ चैत्यवन्दन-विभाग ४८३ आपो शिवपुर स्वाम नगरी मिथिला नाम । निज गणधर सतरे सहित, ||३|| बीस सहस मुनि जासु सीस, इमचल सहस । श्रमणी श्रावक एक लाख, चलि सन्तर सहस ||४|| त्रिण लख अड़तालीस सहस, श्रावकणी सार । भृकुटि यक्ष गंधारि देवी, नित सांनिधिकार ||५|| एक सहस मुनि साथ सुंए, मास खमण तप जाण । प्रभु सीधा सम्मेतगिरि, करो संघ कल्याण ||६|| ॥ श्री नेमि जिन चैत्यवन्दन || समुद्र विजय सुत नेमिनाथ, कृष्ण वरण काय । शौरीपुर अवतार जासु, शंख लञ्छन पाय ||१|| देह धनुष दशमान उच्च, हरिवंश विख्यात । संवच्छर इक सहस आयु, धन शिवा सुजात ॥२॥ छह भत्त संजम लियो ए, नयरि द्वारिका नाम । गणधर इग्यारे सहित, आपो शिवपुर स्वाम ||३|| सहस अढारे शुद्ध साधु, तह चालीस सहस । श्रमणी श्रावक एक लाख, गुणहन्तर सहस ||४|| तीन लाख छत्तीस सहस, श्रावकणी सार । अम्बादेवि गोमेध सुर, नित सांनिधिकार ||५|| मुनि पण सय छत्तीस सुंए, मास खमण तप जाण । प्रभु सीधा गिरनार गिरि, करो संघ कल्याण ||६|| ॥ पार्श्व जिन चैत्यवन्दन ॥ श्रयामि तं जिनं सदा मुदा प्रमाद वर्जितं स्वकीय वाग्विलासतो जितोरुमेघगर्जितम् । जगत्प्रकाम -कामित प्रदान दक्षमक्षतं पदं दधानमुच्चकैरकै तवोपलक्षितम् ॥१॥ सतामवद्यभेदकं प्रभूत सम्पदां पद, वलक्षपक्षसङ्गतं जनेक्षण क्षण प्रदम् । सदैव यस्य दर्शनं विशां विमर्दितैनसां, निहन्त्यसातजातमात्मभक्तिरक्त चेतसाम् ॥२॥ अवाप्य यत्प्रसाद मादितः पुरुश्रियो नरा, भवन्ति मुक्ति गामिनस्ततः प्रभाप्रभाखराः । भजेयमाश्व सेनिदेव देवमेव सत्पदं, तमुच्चमानसेन शुद्ध बोध वृद्धि लाभदम् ||३|| || पार्श्व जिन चैत्यवन्दन ॥ श्री अश्वसेन नरेशनंद, बामा जसु मात पन्नगलांछन पार्श्वनाथ, नील वरण गात ॥१॥ अति सुन्दर जिनराज देह, नव हाथ प्रमाण चरस एक्सी मान आयु, जसु निरमल नाण ॥२॥ अट्ठम तप संजम लियोए, नयरि
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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