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________________ Artists deterekaister diraksksixsotaxxkakkarkstrekkekakkhrarikkistakestreturatyakattitel जैन-रनसार गौतम, सुणनें पछतावे ॥ जय० १४ ॥ वीतराग गुण मनमें धारी, अनित्य भाव भावे । केवल ज्ञान प्रगट होय तत्क्षण, सुरनर गुण गावे ॥जय० १५॥ निर्वाण कल्याणक शासन पतिकी आरती ज्यो गावे । शिव सुख लक्ष्मी प्रधान मिले जब मोहन गुण गावे ॥ जय० १६ ॥ दिवाली की आरती जय जय जगदीश जिनेसर जगतारन राजा, धनधन कीरति तेरी इन्द्र करत बाजा जय जय अविकारा तुम जग आधारा, आरती अमर उतारा, भव आरतीटारा ॥ जय० ॥ षट् कायक प्रतिपालक, अनुकपाधारी । निश्चय नयव्यवहारी, भविजन निस्तारी ॥ जय० २॥ मतिश्रुति अवधि सहित तुम, अंबोदर आए। देवनर मंगल गाए, पुष्पन वरसाए ॥ जय० ३ ॥ जन्म महोत्सव जाना, चौसठ इन्द्रोंने । प्रभु मूरति कर लीनी, मेरू पर वीने ॥ जय०४ ॥ क्षीरोदक हिमकलसें योजन शत शतके । जिन तनु लघु चित * धरके, कर धर सब तनके ॥ जय० ५ ॥ अंतरयामी जाना, सब सुर मन तन की । पदनख मेरु कंपाये, भूसर जलथरकी ॥ जय० ६ ॥ धड़ड़ घड़ड़ धूमगिरि धरके, सुरगण सभि कंपे। प्रभुकृत जान खमाये, जय जय मुख * जपे ॥ जय० ७ ॥ अगम शक्ति जिन जाना, प्रफुलित जल ढारे । सुर भिवस्त्र सब भूषण, चमरू झपटारे ॥ जय० ८ ॥ धुंगि धुनि धपमप पामा दल धोंको भेरन झलकारे। गुड़ड़ गुड़ड़ झांझा कठतारा नौवत सुर भारे ॥ ९ ॥ ताथेई ताई सचिगण नाचे, रिमझिम नूपूर का द्रुपदताल सुर गावे आनन्दकी वरखा ॥ जय० १०॥ या विधि सबि जिनेन्द्रे सेवे, जग नायक जाना। अमृत उदय धन धन जिम नर भव, जिम घट परवाना ॥ जय० ११॥ नंदीश्वर द्वीप आरती “जीया चतुर सुजाण नवपद् के गुण गाय रे" जीया अष्टम द्वीपमंगल आरती गाय रे।परमानंदपद एहीज, जपतां अजरामर सुख पायरे ॥जी० १॥ ऋषभानन चन्द्रानन वारिषेण, वर्धमान पद भाय रे । SEEEEEEEEEEEEEEEKSEEKERAYEKetkhtnak.51-55E 5KEESLEEEEEEEEETraninalestialities elitisatiled
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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