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________________ httratory వందనముకనుగetarity tartatta వందనం जैन-रनसार ATRINAanatantnatandaree MTAKENERATAR A KH ARYhakorbet ballanti-islanewalinsancharaknesianariableiromanianlahshala-STREAMIN निज गुण अपनो शुद्ध करी रे ॥ नृ० ॥ रावण राजा नारि मंदोदरी, अष्टापद पर नृत्य करी रे ॥ नृ० ११ ॥ गोत्र तीर्थंकर बाँध्यो भावे, तिन परि तुम भवि भगत करी रे ॥ नृ० ॥ सुमति कहे सेवो भल भावें, श्री जिन तारण तरण तरी रे ॥ नृ० १२ ॥ ॐ ह्रीं चतुर्दश रज्वात्मके शाश्वत अशाश्वत जिनेन्द्राय अष्ट द्रव्यं मुद्रां यजामहे स्वाहा । कलश ॥ तेज तरण मुख राजे ॥ इण विधि पूजन करिये चतुर नर ॥ इ० ॥ शाश्वत जिनवर राज चवदमें, इण नामे अवधरिये ॥ च० १३ ॥ द्वीप अढ़ीमें जे जिन छाजे, ते बंदी अघ हरिये ॥ च० ॥ सहस सत्तावन लाख छपन वलि, अष्ट कोड़ मन धरिये ॥ च० १४ ॥ चउसयछयाली चैत्य वन्दीने, पाप करम सब हरिये ॥ च० ॥ तीन लोकनी संख्या दाखी भविजन ते उर धरिये ॥च० १५॥ शाश्वत अशाश्वत सहु जिनवरनी, सेव करो सुख करिये ॥ च० ॥ अष्ट सिद्धि नवनिद्धिना दायक, चरण करण गुण धरिये ॥ च० १६ ॥ कामधेनु चिन्तामणि थी ए, वांछित अधिक सूं करिये ॥ च० ॥ ऋषभानन चन्द्रानन स्वामी, वारिषेण मन धरिये ॥च०१७॥ वईमान जिन सुखके दाता, पूजत अनुभव वरिये ॥ च० ॥ मंगल कारण सब दुख वारण, भव्य सकल उर धरिये ॥ च० १८ ॥ लोक चवदना भेद वखाण्यो, गुरु मुख थी अवधरिये ॥ च० ॥ ए पूजन जे भणसी गुणसी, तसु वंछित सब सरिये ॥ च० १९ ॥ संवत सय उगणीसे त्रेपन, माधव सुदि शुभ करिये ॥ च० ॥ आखा तीज दिवस सुखकारी, पूज रची गुण भरिये ॥च० २०॥ श्री जिनचन्द्र सूरि गुरु खरतर, तसु गुण गण उर धरिये ॥ च० ॥ प्रीत सागर गणि शिष्य सुवाचक, अमृत धरम सुमरिये ॥ च० २१ ॥ सीस क्षमा कल्याण सुपाठक, ज्ञान तणा गुण * यह पूजा बीकानेरमे श्री सुमति मुनिजी महाराज ने सम्बत् १६५३ वैशाख सुदी ३ को ! A RASialismirmissionrolmin.nindimkisansamlinnarliamnatarashatanAnitaTARAN Banki-matalalalalalalasialmano बनाई है। मन्यूनतम मूलद्रव्यमान्लाजा
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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