SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 467
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ కము anticstatics వాడు ముందు ముడుచుకుంటుందడుగు . . . . . ." tantrtasthitadkatiranka Tamtartue a kirlinkyaintighakhnathokistaketindiakirtan khetmlanohkrantonstitue-taineraturopear-tatistiryalasntatstarretatininemakitacioratatisthyanhatialistianiakunthalickmalanwartialhelichaala पूजा-विभाग जिये रे, ए सकला सुरराय । नव ग्रेवैयक जानिये रे, कल्पातीत कहाय ॥ दि. ९ ॥ तिण पर पंचानुत्तरें रे, देव कह्या जगभान । विजय नाम पहिलो कह्यो रे, दुजो वैजयंत जान ॥ दि० १०॥ जयंत नाम तीजो सही रे, अपराजित अभिराम । सर्वारथ सिद्ध जानिये रे, सब सुख केरो ठाम ॥ दि० ११ ॥ चार आठ वलि सोलना रे, चौसठने बत्तीस । इतने मनना सुन्दरू रे, मोती कहे जगदीस ॥ दि. १२ ।। कल्पातीत छे ए सहू रे, भावे वंदे तेह । एकावतारी ए सहू रे, भाखे प्रभु ससनेह ॥ दि. १३ ॥ लाख चौरासी ऊपरे रे, सहस सताणुसार । ऊपर वलि तेवीस छे रे, भाखे इम गणधार ॥ दि. १४ ॥ इहां जे शाश्वत जिनवरू रे, पूजो भवि सुखकार । सुमति सदा जिनराज कुं रे, वंदू बारम्बार ॥ दि. १५॥ ॐ ह्रीं चतुर्दश रज्वात्मके शाश्वत अशाश्वत जिनेन्द्राय अष्टद्रव्यं मुद्रां यजामहे स्वाहा । चतुर्थ धूप पूजा ॥दोहा॥ धूप दशांग लेई करी, पूजो जग भरतार । अशुभ करम दूरे हुवे, प्रगटे सुक्ख अपार ॥१॥ चवदे राज ऊपर रहे, सिद्ध महा जयकार | तीन लोक सिर छत्र है, करुणा रस भंडार ॥२॥ ॥ चाल ( श्री चन्द्रप्रभ जिनवर साहब ) ॥ निरमल सिद्ध सिलाने ऊपर, सिद्ध रहे सुखकारा मैं वारी जाऊं सिद्ध रहे सुखकारा । निरमल जोत विराजे साहिब, निरमम निरहंकारा, मैं वारी जाऊं निरमम निरहंकारा ॥३॥ अनन्त ज्ञान दरशन जग प्रगट्यो, मिट गये करम विकारा, मैं वारी जाऊं मिट गये करम विकारा । अजर अमर अक्षय स्थित जेहनी, वोध बीज दातारा, मैं वारी जाऊं वोध बीज दातारा ॥४॥ राज चवदके ऊपर राजे, सिद्धशिला जयकारा, मैं वारी जाऊं सिहशिला जयकारा । पैंतालीस लाख योजन कहिये, स्फटिक रतन बहु सारा, मैं वारी जाऊं स्फटिक रतन बहु सारा ॥५॥ आठ योजन की जाड़ी ใดใดใดจะได้จใดพอไดโอดได้โดยตรงได้ใกปัดยจะดูดไม่ได้โดดโดยฝันไดคดโคกดอกไตใจไอดอกได้อะไรใดศองคโตไดโอดไหลไคลไกปัดไทรทองปลูไลได้ในไตโดดไไดไรจาสันโดษได้พได้ชัดได้ไคตไกลไดไไดไไดดดดได้โดยไAI ตอนนี้ได้สักคในใจใคร to lunke bare
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy