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________________ ............................... ...........maran mmmmmmmmmarrirani.maraamaanam पूजा-विभाग । दुरित तिमिरदाहंशुद्ध सद्बोधबीजम् , अविचल निधिधामध्याययन्प्राप्नुवन्ति ।। ॥१॥ गणाधीशौदार्य सकल गुण रत्नैर्जलनिधिः । गाम्भीरो भूच्छ्रीमान् प्रवर । जिनराजैर्मुनिपतिः । तत्पट्टे सूरीन्द्रद्युमणि जिनरङ्गैर्खरतरः । वृहद्गच्छाधीशो । । भविजन निधानेक समभूत् ॥२॥ क्रमादायात श्रीजिन अखय सूरीन्द्रमभवत् । नराणां यत्तापं तदुपशमनं पूर्ण शशिभृत् ॥ तत्पट्टे मार्तण्डो भविक जसु बोधैक रसिकः । भुवौ विख्यातं श्री प्रवर जिनचन्द्रो विजयते ॥३॥ भविजन शुभ भाव भक्ति कल्याणक नमिये रे, गर्भ जन्म दीक्षा वरज्ञान परमातम पद पंचम जान । ए जिनवरके पंच स्वरूप, वरण न किये गणधर गुण रूप ॥ भ० ४ ॥ जिनकी वाणी गुण गणधीर, विविध अरथ त्रिपदी गम्भीर । श्री जिनराज चरण युग भक्ति, विलसी आतम भावनि वृत्ति । भ० ५॥ तिन प्रभुके यह पंच उल्लास, कल्याणक रचना इहां * भास । परम मंगल प्रभु पंच कल्याण, भविजन दायक परम निधान ॥भ०६॥ श्रवण मनन ध्यायन मनलाय. भविजन गान किये अघ जाय । वृद्ध मनोहर खरतर धीश, गणभृत श्रीजिन अखय सूरीश ॥ भ० ७ ॥ तत्पट्टे । उदयाचल भान, श्री जिनचन्द सुरिंद सुजान । तसु आज्ञायें भक्ति उदार, रचना कीधी संघ हितकार ।। भ० ८ ॥ ज्ञान निधि गुणमणि भंडार, महिम तिलक पाठक सुखकार । तत्पंकज मधुकर सुख पीन, चित्रलब्धि आतम गुणलीन॥९॥ तत्पद निद्धि उदय जगभान, जिन आज्ञा प्रतिपालक जान||१०||भाग्य नन्दी गुरुपद अनुरक्त पाठकचरित्र नन्दीयुक्त कलकत्ता मंदिर सुखधाम, राजऋद्धि पूरण सुखकाम । तसु श्रावक अति तत्व विचार, धर्मतना जाने सुविचार ॥ भ० ११ ॥ पुण्योदय महणोत विख्यात, चंद महताव धरमशुभभात । जीवादिक शुभ तत्त्वनो ज्ञान, तिन प्रेरक थी रचना जान ॥भ० १२॥ नन्द, वसु प्रवचन शशि रूप,सम्भव च्यवन दिसव दिन । भूप । भणस्ये सुणस्ये जे नर भाव तस घर थास्यें निद्धि स्वभावा। भ० १३॥ * रंग विजय खरतर गच्छीय ज० यु० प्र० वृ० भट्टारक श्रीपूज्यजी श्रीजिन अखयसूरिजी महाराज के शिष्य जं० यु०प्र० वृ० भट्टारक श्री पूज्यजी श्री जिनचन्द्र सूरिजी महाराज ने यह , पञ्चकल्याणक पूजन विक्रम सम्बत् १८८६ मि० फागुन सुदीको कलकत्ते में रची है। niccheledulesolasalistianslashwanlnelialesaliano-linickonsaclipisticosteiotieoholicladisaslcolinolidaestheneerinehakakirasachers Yamahaliniclilaaledarliametialondonla-tattathalilanatmlaliralesterolajarlestatitatestetriotolatathalaldkiy
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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