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________________ ఆడattitis కంద పోవడం జరుగును కుదురుకుటtstatistate पूजा-विभाग ४२७ Budhathokiataladiolantatalasahakikatiahindiadodartakkadishaktishalinilakakakis a tion ॥ श्लोक ॥ पर्यायानन्त धर्मैः स्वगुण वरयुतं, भंग निक्षेप गम्यैः, हेयादेय प्रवाहै भय नय सहितैर्दायकैः शुद्धबोधम् । सौम्यैः सौगंधयुक्त विबुध सुखकर, स्व स्वभावैरगाधं, नैर्मल्यैः पञ्चवर्णैः सुरभि सुकुसुमैरर्चयेऽहं जिनेन्द्रान् ॥५॥ ॐ ह्रीं परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय लोकालोक प्रकाशकाय चतुर्विंशति तीर्थकृतां केवल कल्याणकेभ्यो पुष्पं यजामहे स्वाहा । धूप पूजा ॥ दोहा ॥ अनंत तीन अगाधता, केवल ज्ञान निधान । ऐसे जिनवर धूप तूं, पूजो भक्ति विधान ॥१॥ ( मूरत थारी मोहनगारी आछी प्यारी लागे) श्री जिनराज हो अनुपम परमशुद्धता है थारी। गुण ज्ञानादिक पर्याय पंच, अविचल संपद सारी ॥ श्री० २ ॥ क्रम भावी पर्याय कहीजे, गुणजे धर्म स्वकामी। एक अनेक अस्ति अपर युत, निजगुण भोगि अकामी ॥ श्री. ३ ॥ पुद्गल वर्णादिकामना शब्दे, तेहनी भोगता त्यागी आतम भाव रहे जिनचन्द्रे, आवि सुक्खने रागी ॥श्री० ४ ॥ ॥ श्लोक ॥ शुद्धकं तीक्ष्ण भावैः सकल रिपुजयोद्घोष कीर्तिविशालं, वेत्तारं सर्व वस्तुन्गुणमगुण यथा वस्थितं निर्विकल्पैः । भावाभावं निजगुण रमणं दाहक अष्ट कर्मान, शुद्धात्मज्ञानरंगैः कलिमलि दलितैर्गंध धूपैर्यजेऽहम् ॥५॥ ॐ ह्रीं परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय लोकालोक प्रकाशकाय चतुर्विशति तीर्थकृतां केवल कल्याणकेभ्यो धूपं यजामहे स्वाहा। alitarastratorlarkiokiste-de-a-corapalistiathakathkrticladlilionwliakankalanielilialistashairiilaalisada-ATrailablet
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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