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________________ सूत्र विभाग व्यंतर ज्योतिष मां वली जेह, शाश्वता जिन वन्दु हूं तेह | ऋषभ चन्द्रानन वारिषेण वर्द्धमान नामे गुणसेण ॥ १०॥ समेत शिखर बन्दू जिणवीस, अष्टापद वन्दु हूं चौवीस | विमला चलने गढ़गिरनार, आबू ऊपर जिनवर जुहार ॥११॥ शंखेश्वर केसरियो सार, तारंगे श्री अजित जुहार । अंतरीक वरकाणो पास, जीरावलोने थम्भण पास ॥१२॥ गाम नगर पुर पाटण जेह, जिनवर चैत्य नमू ं गुणगेह । विहरमान वन्दू' जिनवीस, सिद्ध अनंत नमूं निशदीस ||१३|| अढ़ीद्वीप मां जे अणगार, अढ़ार सहस सिलांगनाधार । पञ्च महाव्रत समिति सार, पाले पलावे पञ्चाचार ||१४|| बाह्य अभ्यन्तर तप उजमाल, ते मुनि वन्दु गुणमणिमाल । नित नित उठी कीरति करूं, 'जीव' कहे भवसागर तरूं ॥ १५ ॥ N १७ वीर स्तुति * परसमय तिमिर तरणिं, भवसागर वारि तरण वर तरणिम् । रागपराग समीरं, वन्दे देवं महावीरम् ||१|| निरुद्ध संसार विहारकारि, दुरन्त भावारि - गणा निकामम् । निरन्तरं केवल सत्तमावो, भयावहं मोहभरं हरन्तु ॥२॥ संदेह कारि कुनयागम रूढगूढ़ संमोह पङ्क हरणामल वारिपूरम् । संसारसागर समुत्तरणोरुनावं, वीरागमं परमसिद्धिकरं नमामि ॥३॥ परिमल भरलोभा लीढ़ लोलालिमाला, वर कमलनिवासे ! हारनी हारहासे ! अविरल भवकारा गारविच्छित्तिकारं, कुरुकमल करे मे मङ्गलं देवि सारम् ||४|| वीर स्तुति संसार दावानल दाहनीरं, संमोह धूलीहरणेसमीरं । माया रसादारण सारसीरं, नमामि वीरं गिरिसारधीरम् ||१|| भावा बनाम सुर दानव मानवेन, चूला विलोलकमला वलिमालितानि । संपूरिताभि नत लोक, समीहितानि । कामं * स्त्रियों को प्रातः काल के प्रतिक्रमण में संसारदावा की जगह यही स्तुति कहनी चाहिये
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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