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________________ पूजा-विभाग विजयकारक सब जगमें, नित प्रति होत सहायो ॥ प्र० १६ ॥ सुमति सदा जिनराज कृपासे, ज्ञान अधिक जस गायो । कुशल निधान मोहन मुनि भावे, ज्ञान तणो गुण गायो ॥ प्र० १७ ॥ पञ्च कल्याणक पूजा च्यवन कल्याण ॥ दोहा ॥ पञ्च कल्याणक जिनतणा, पूजो जे मन भाव । श्री जिनचंद्र पदते लहे, अखय अचल पदठाव ॥१॥ ( पूर्व मुखसावनं ) ४०७ पञ्च कल्याणकं विविध गुण थानकं, तारकं भविजनं यानपात्रं ॥ अइयो भ० २ ॥ वीसथानक पदं भक्ति धरसे वदं, सकलमल कर्म दुख चार गात्रं || अइयो स० ३ ॥ तृतीय भव संचितं, तीर्थपदमद्भुतं, नर सुर भवकरं शुद्धवाचं ॥ अइयो नर० ४ ॥ शुक्ति मुक्ति परंचविय मातृदरं, लहिय जिनचंद्र शुभ सुपन सूचं ॥ अइयो ल० ५ ॥ ॥ दोहा ॥ । च्यवन कल्याणक सेवतां, पामे भवनो पार । आतम गुण निर्मल हुवे, वोध बीज भंडार ॥६॥ ( मेरी तुंबियेकी पटवारी परोसण ले गई ) तेरे आननकी बलिहारी दिनेसर में गई जी अत्युज्जल गज वृषभ मनोहर, सिंह श्री सुखकारी जी ॥ ते० ७ ॥ दाम शशी दिनकर अति सुन्दर, ध्वज कुम्भसर गुणधारी जी । सागर भुवन त्रिविध गुण आगर, वह्निरत्न प्रकाशी जी ॥ ते० ८ || तीर्थकर पढ़ द्योतक जाणी, आनन्द हर्प उल्लासी जी । इन्द्रादिक शक्रस्तव कीधो, गुण जिनचन्द्र विलासीजी ॥ ते ० ९ ॥ ॥ इलोक ॥ सकल तत्त्व विभाकर भास्वरं, त्रिभुवने भवताप निवारकं । च्यवन धाम Letota toto tactest tent to to to tinto enterte Yocto Twink to to
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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