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________________ 123333 पूजा - विभाग 2 | सागर अनुयोगी, कीन्ही पूजा तयारी भूल परी जो इन पूजन में. arrai अधिकारी | नाथ० १० ॥ SALAM पञ्च ज्ञान पूजा प्रथम मति ज्ञान पूजा ॥ दोहा ॥ ॥ श्लोक ॥ वीर: सर्व मुरासुरेन्द्र महितो, वीरं बुधाः संश्रिताः । वीरेणाभिहतः स्वकर्म निचयी, वीराय नित्यं नमः || वीरात्तीर्थ मिदं प्रवृत्तमतुलं वीरस्यबीरंतपः । वीरे श्री वृति कीर्ति कान्ति निचयः श्री वीर भद्रंदिश ॥ ११ ॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमन्महावीर जिनेन्द्राय अघं यजामहे खाहा । मनरंग | उछरंग ॥१॥ वर्द्धमान जिनचंदकूं, नमन करी पूज रचं भवि प्रेम से, सांभलजा पांच ज्ञान जिनवर का मति श्रुति अवधि प्रधान । मनपर्यय केवल वडी, दिनकर जीत समान ||२|| ज्ञानवड़ो संसार में, गुरु बिन ज्ञान न होय | ज्ञान सहित गुरु वंदिये, सुचि कर तनमन होय ||३|| वीर जिणंद वखाणियां. नंदी सूत्र मझार । भव्य सदा अनुभव धरी, परावी सुख श्रीकार ||१|| निरमल गंगोदक भरी कंचन कलश उदार | श्रुत नागर पूजन करो भाव घरी भविनार ॥ ॥ २०६ चितर घरी, अनुभव रंगे बीन परम पद विये ) अनि fare गुण आग. नविन विये । मति तदा नमिये, निज पर एकलहरे सीरिये ॥ ० ॥ व्यंजन कर गमिये । इस जी
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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