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________________ REATMASIttarterArt s ARATARATHI-RINTANKartikNAwearrantart..........ne ३ पूजा-विभाग पञ्चम दीप पूजा ॥ दोहा॥ शुद्ध हवी शुभ पात्रमें, शुद्ध वर्तिका जोय । करि दीपक पूजे प्रभू, मोह तिमिर क्षय होय ॥१॥ (रागनी मांड) महावीर प्रभूने तप संयम दीपाया हैंजी वाह, वाह वाह जी हो हो हो हो महावीर प्रभूने ॥ चंड कौशिक फणी आयके, दियो आपके डंक । महाराज उसको अष्टम स्वर्ग पठाया हैंजी वाह ॥ वाह० २ ॥ शुल हस्त धर है दैत्यनें, दिये कष्ट अति घोर । बलिहारी उसको सिद्धारथ समझाया हैंजी वाह ॥ वाह. ३ ॥ संगम सुर एक नीचनें, दिये घोर उपसर्ग । सुरराज उसको मुग्दर मार भगाया हैंजी वाह ॥ वाह. ४ ॥ कानोंमें कोले दई, गवली नीच अजान । जिनराज उसपर शान्ति भाव दरसाया हैंजी वाह ।। वाह. ५ ॥ तप दीपक दीपाय के, मोह तिमिरक्षय कीन । महावीर प्रभूके दास चतुर, गुण गाया हैंजी वाह ।। वाह. ६ ॥ ॥ इन्द्रसभा ॥ चेतन पात्र सुकर्म वर्तिका, दुखद कर्म हवि होय । ज्ञान ज्योति प्रगटे तनु भीतर, तम अज्ञानको खोय ॥७॥ (रागनी भैरवी ) प्राण मेरे ल्यो सुप्रदीपक आज, साहेब गरीब निवाज ॥ तं परमेश्वर तं जगदीश्वर, तूही सुधारन काज। तेरी अखियन पर मैं वारी, १ जाऊँ हूँ महाराज ।। प्रा० ८ ॥ तुमसे मेरा प्रेम देखके, होय कर्मको लाज।। अब जो साहेब प्रेम मिटादो. तो मुझ होय अकाज ॥ प्रा० ९ ॥ दीग्छ । पड्यो अब रूप तुम्हारो. इस दीपकके साज । दास चतुरके वांछित फल गए. रंक निपायो राज ॥ प्र० १० ।। लोक॥ वीरः सर्व सुरा सुरेन्द्र महतो. बीयुधाः नंश्रिताः । वीणाभिहतः
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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