SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 409
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ E MENTalimater l adhaMT+TEST-STI-TITAT पूजा-विभाग सुनि उलसता रे॥ वा० ३॥ समवसरण गिरि परिहर या रे, भामंडल चपला वह्या रे। चपला वह्या, सुरनर चातक ऊमह्या रे वा०४॥ बोध बीज उपजावियो रे, भवि उर क्षेत्र बधावियो रे । भविक मुगति फल पावियो रे । वा० ५॥ ॥ काव्य ॥ सलिल चन्दन पुष्प फलबजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः विविध नव्य मधु प्रवरान्नकैः जिनममीभिरहं वसुभिर्यजे ॥६॥ ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् नेमि जिनेन्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूप, दीप, अक्षतं, नैवेद्यं फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा। त्रयोविंशतितम श्रीमत्पावं जिन पूजा ॥दोहा॥ अश्वसेन नंदन सदा, वामोदर खनि हीर । लोक शिखर शोभे प्रभू, विजित कर्मबड़ वीर ॥१॥ ॥ राग॥ (बाजे तेरा बिछुआ बाजे,) पास जिणंदा प्रभु मेरे मन बसिया । शिव कमलानन कमल विमल कल, तर मकरंद पान अति रसिया | वामानन्दन मोहनि मूरत, सकल लोक जनमन किय वसिया ॥ पास जि. २ ॥ परम ज्योति मुख चंद विलोकत, सुरनर निकर चकोर हरसिया । अंजन गिरि तनु दुति जिन जलधर, देशना अमृतधार वरसिया ॥ पास जि० ३ ॥ पिय करि भवि चिरकाल तरसिया, मुगति युवति तनु तुरत फरसिया । कुमुद सुपद शिवचन्द्र जिणंदिनी, वारिजाऊं मन मेरो अतिह हुलसिया ॥ पास जि० ४ ॥ ॥ काव्य ॥ ___ सलिल चन्दन पुप्प फलबजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्यजे ॥५॥ॐ ह्रीं परमपरमात्मने । अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् पार्श्व जिने gะไดไม่ได้ในไดไอได้ในไรทันไจ ไeใน r ในไดนาไปัวใจย-นังXไelatitis ได้จโด - Geไดไอคง ๕ ใน ทั้งนี้ ได้ใช้งใจไว้ในใจยังไง -----kathinral...HELLE.JHAathikatantali-E-TRAELA-ATALLERKathai-distriJitutimatm ใดในใจไปัดใจ วัดไร ใจงใจนัก “ไร 4 คน ใครได้ไปในไดนั้นนอนเป็น ใตไป .1 ป.ในองนะ --------- -- 49
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy