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________________ पूजा - विभाग ३७५ नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्य्यजे ॥५॥ ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् चन्द्रप्रभ जिनेन्द्राय जलं चन्दनं पुष्पं, धूपं दीपं अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहेस्वाहा । नवम श्री सुविध जिन पूजा ॥ दोहा ॥ सुविध सुविध समरण थकी, कामित फल प्रकटाय । अतीगहन संसार वन, बहुल अटन मिट जाय ॥१॥ ॥ राग ॥ ( चंपक केतिक मालती, ) सुविध चरणकज वंदिये ए, नंदिये अति चिरकाल । शिव तरवारि निकंदिये ए, विघन कंद तत्काल || हां ए० २ || आज जन्म सफल भयो, दीठो प्रभु दीदार | तनु मन हग विकसित भये, जिम कज लखि दिनकार || हां ए० ३ || अमृत जलधर वरसियो, भवि उरक्षेत्र मझार । दर्शन सुरतरु ऊगियो, शिव फलनो दातार ॥ हां ए० ४ ॥ ॥ काव्य ॥ सलिल चन्दन पुष्प फलवजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिर्य्यजे ||५|| ॐ ह्रीं परमपरमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् सुविध जिने - न्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा । दशम श्री शीतल जिन पूजा ॥ दोहा ॥ मुझ तन मन शीतल करो, श्री शीतल जिनराय । तुम समरण जलधारसे, अंतर तपत पुलाय ॥१॥
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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