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________________ पूजा - विभाग षष्ट पद्मप्रभ जिन पूजा ॥ दोहा ॥ हिव षष्टम जिनवर तणी, पूजन करो उदार । भविचित भक्ति धरि करी, सुख संपति करतार ॥१॥ ॥ राग सारंग ॥ ३७३ ( बाबन चंदन घसि कुम कुमा० ) हां होरे देवापदम प्रभु मुख चन्द्रमा, नित सकल लोक सुखदाय ए ॥ हां० ॥ हरिसुर असुर चकोरड़ा, नित निरख रह्या ललचाय ए ॥ हां ॥ २ ॥ जिन मुख वचन अमृत तणो, जे श्रवण करे भवि पान ए ॥ हां ॥ ते अजरामरता लहे, हरिगण करे जसु गुण गान ए || हां० ॥३॥ घर नृप कुल नभ दिन मणि, प्रभु मात सुशीमा नंद ए ॥ हां ॥ प्रभु दर्शनतें प्रति दिने, होज्यो शिवचंद आनन्द ए ॥ हां० ॥४॥ ॥ काव्य ॥ 5 " सलिल चन्दन पुष्प फल व्रजैः, सुविमलाक्षत दीप सुधूपकैः । विविध नव्य मधुप्रवरान्नकैः, जिनममीभिरहं वसुभिजे ॥५॥ ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञान शक्तये जन्म जरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् पद्म प्रभ जिनेन्द्राय जलं, चन्दनं, पुष्पं, धूपं, दीपं, अक्षतं, नैवेद्यं, फलं, वस्त्रं, मुद्रां यजामहे स्वाहा | सप्तम सुपार्श्व जिन पूजा ॥ दोहा ॥ श्रीसुपार्श्व सुरतरु समो, कामित पूरण काज । भोभविजन पूजो सदा, वसुविधि पूज समाज ॥१॥ ॥ राग कल्याण ॥ ( मेरा दिल लाग्या जिनेश्वर से ) मेरी लागी लगन जिनवरसे ॥ मेरी० ॥ जैसे चन्द चकोर भमरकी, केतकि कमल मधुरसे || मे० ॥ एह सुपारस प्रभु भये पारस, गुणगण
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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