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________________ BAtkira- e - ३६८ जैन-रत्नसार । तरण गुण पहिचानिये ॥ इम जाणि भविजन कुशल कारण, वीश पद उर आणिये ॥१॥ इह वरस* चन्द्र दिनेन्द्र हरिमुख, विधि नयन छिति मिति धरूं । तिह मास भादव -धवलदल तिथि, पंचमी रविवासरूं । बंगाल - जन पद जहां विराजित, शिखर तीरथ गिरिवरूं । सहु नगर शोभित, अजीमगंजपुर द्वितीय बालूचर पुरूं ॥२॥ खरतर गणेशर विजित मुरगुरु, विमल गुण गिरिमाधरा । गुण भवन भविजन नलिन कानन नित विकाशन दिन करा । मुनिचन्द्र श्रीजिनलाभ सुरीन्द सुगुरु महीयल युगवरा ॥ सकलेन्द्र बंद्य जिनेन्द्र शासन मंडना नितहित धरा ॥३॥ तसु पट्ट उज्जल शिखरि गणवर, उदय गिरि वासर करा। योगीन्द्र वृन्द नरेन्द्र वंदित, चरणपंकज गणधरा । आचार पंच, छतीस गुणधर, सकल आगम सागरा॥ युगप्रवर श्री, जिनचन्दसूरि गुरु सकलसूरीसरा ॥४॥ तसु चरण कमल, बियुगलसेवन, अहनिशि मधुकरता धरी । पुन सुगुरुपद, अरबिंद युगनी है कृपा नित चित आदरी ॥ गणधार श्रीजिन हरषसूरी, हरषधर धन अघहरी। या बीस पदकी विविध पूजन, विधि तणी रचना करी ॥५॥ మనతనమునందనవనందనవనమునంతయుగtests attacks KKRANTEEMAMHEMANTrotharototadalNLINEKehliadionlailaalachilanat a L ऋषि मण्डल पूजा ' प्रथम पूजा ॥ दोहा ॥ प्रणमी श्रीपारस विमल, चरणकमल सुखदाय । ऋषिमंडल पूजन · रचं, वरविध युत चितलाय ॥१॥ नंदीश्वर मंदिर गिरे, शाश्वत जिन महाराज | अरचे अड विधि पूजसे, जिमि समस्त सुरराज ॥२॥ तिम चितजिनपति गुणधरी, श्रावकसमकित धार । विरचे जिन चौबीस की, अडविधि पूज उदार ॥३॥ * यह पूजा श्री जिनहर्षसूरिजी महाराज की बनाई हुई है और सम्वत् १८७१ के लगभग भादवा सुदी ५ को बनी है। aterkonkhathanashlil
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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