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________________ అవునందు నందనవనం wwwAawaranwwwwmoveursawar. జనవరతనము వున్న మన जैन-रत्नसार भाना हो भवि प०॥ प्रवरनाण किरिया धर मुनिवर लाभालाभ समाना॥हो * भवि प० ॥ ७ ॥ ते कांचन भाजन सम कहिये, भवजल तारन याना ॥ हो भवि प० ॥ शुद्ध मन द्वादश व्रत दरसन धर, तारपात्र सम | जाना ॥ हो भवि प० ॥८॥ शुद्ध समकितधर, श्रेणिक परमुख, रह्या अवि रति गुणठाणा ॥ हो भवि प० ॥ ताम्रपात्र सम एहने कहिये, भावी गुणमणि खाना ॥ हो भवि प० ॥९॥ अपर सकलजन मिथ्यादृष्टी लोहादि पात्र गिनाना ॥ हो भवि प० ॥ जिनशासन रंगे रंगाना, वाचंयम सुप्रमाना ॥ हो भवि प० ॥१०॥ एहने दान दिया शिव लहिये, एह सुपात्र पहिचाना'॥ हो भवि प० ॥ पंचदान दशदान निकरमें, अभयसुपात्र महिराना ॥ हो भवि प० ॥११॥ नरवाहन शुभ पात्र दानतें, भये जिन हरष निधाना ॥ हो भवि प० ॥ शालिभद्र वलि सुरसुख लहियो, सुरनर करय वखाना ॥ हो भवि प० ॥१२॥ ॥काव्य ॥ अणंतविण्णाण विभायरस्स, दुवाल संगी कमलाकरस्स । सुलद्धवासा जयगोयमस्स, णमो गणाधीसर गोयमस्स ॥१३॥ ॐ ह्रीं श्रीगौतमाय नमः। षोडश वैयावृत्य पूजा ॥दोहा॥ सोलम पद में जाणिये, वेयावच्च विधान । अखिल विमल गुणमणितणो, सोहे प्रवरनिधान ॥१॥, जिनसूरी पाठक मुनी, बालक वृद्ध गिलान ।। तपसी चैत्य संघ, करो वेयावच्च प्रधान ॥२॥ ॥राग जंगली ॥ (मुने म्हासे कब मिलशे मन मेलू ) सेवोभाई, सोलमपद सुखकारी । श्रीजिनचंद्र प्रमुख दशपद नो, करो वेयावच्च भारी ॥३॥ श्रीतीर्थंकर त्रिभुवन शंकर, अवर केवली हारी। मनपर्यवधर अवधिनाणधर, चौदपूरव श्रुतधारी ॥ से० ४ ॥ दशपूर्वी उत्कृष्ट ममममममननननननननननन्मन्बूण मूल्यवानमनग्राना-वस्थू SHARIRA M AYANENEkalakk नचक्रवत्रण -Karatahikattachi.velamNE
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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