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________________ attracteకు Mahడుకుంటుండగడం మనం पूजा-विभाग ERERatottarashariritutartarika-AIRKARKEE Kita-koh thatantaliatestakathakikatatatatak-lish malnitish KAKKARTA Testatik BEENabkrtistskobakaitig । कुमति कठिनता नासे । कृष्णादिक लेश्यानी मलिनता, जाये विनय गुण भासे ॥ ध्या० ७॥ दोय सहस अरु अधिक चिहत्तर, देववंदन निरधारो। गुरु वंदन विधि चारसे बाणूं , भेद करी उर धारो ॥ ध्या० ८ ॥ तीर्थकरादिकनो मन रंगे, विनय चरण शुभ ध्यायो । धन नामा भविजन शुभयोगे, पद जिन हर्षे पायो ॥ ध्या० ९ ॥ ॥काव्य ॥ आणंदिया सेसजगजणस्स, कुंबिंदु पादामलताचणस्स । सुधम्म जुत्तस्स दयासयरस, णमो णमो श्रीविणयालयस्स ॥१०॥ॐ ह्रीं श्रीविनयाय नमः ॥ एकादश चारित्रपद पूजा ॥दोहा॥ इग्यारमपद नित नमू, देश सरव चारित्र । पंक मलीनता दूर करी, चेतन करे पवित्र ॥१॥ एह चरण सेवन करे, रंक थकी सुरराय । तीन जगतपति पद दिये, जसु सुरनर गुणगाय ॥२॥ ॥राग सारंग ॥ (बावन चंदन धसि कु०,) चरण सरण मुझ मन हरयो, सुख करण हरण धन पाप ए ॥ हां हो रे वाला ॥ एह चरण जलधर हरे, अज्ञान तरुणतर ताप ए ॥ हां. ३ ॥ आठ कषाय निवारता, देशविरति प्रगट हुवे खास ए॥ हां ॥ चार कषाय निवारिया, समविरति लहे गुणवास ए॥ हां. ४ ॥ इगवासर सेव्यो थको, शुद्ध सर्व संवरचारित्र ए ॥ हां० ॥ परमानंद धन पद दिये, सुरलोक जनित सुखचित्र ए ॥ हां० ५ ॥ भवभय तरुगण छेदवा, ए संयम निशित कुठार ए । हां० ॥ ज्ञान परंपर करण छे, अमृत पदनो हितकार ए ॥ हां. ६ ॥ चरण अनंतर करण छ, निरवाण तणो निरधार ए ॥ हां० ॥ सरवविरति शुद्ध चरणसे पामे अरिहंत पद सार ए ॥ हां० ७॥ वरस चरण परजायमें, अनुत्तर सुख अतिक्रम होय ए । हां० ॥ सतर भेद चारित्रना, कहिया Paraknesiardioralhatkareliatetdehstreakistak-rokmalarakiral-diakamkarakakiralekalentestak-READhakikattotalb h akarisahialalkoreachest-traliandroidiseshindislokalradhhakAstrolorleaderstakalaya D
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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