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________________ vidiogotiatrikabetboatkoseboatshatobhdoshtottakshastothtobakoartsaakstate जैन-रत्नसार rrenmaarne.or. ............... ........... ......... .................................................... Bক্ষপ্তঞ্চগ্নরুঙ্কগ্বপ্নগুঞ্চল্কপুঞ্চল্পঃন্বন্তুরুগ্নঝঙ্কল্পঞ্চস্কন্তুষ্টঙ্কক্কক্কক্কক্কক্কন্ধঃঃঃঃষ্কক্কক্কক্কক্ষপ্লঙ্কল্পগু संयम योगे सीदति बालक, ग्लानादिक सहु मुविवरा । एहने उचित सहाय दीयन ते, वारे एहना दुःखभरा ॥नि०४॥ पर्याय वय श्रुत त्रिविध ए थविरा, वीसरु साठ समो परा । वयधर समवायाधिक पाठक, एह थविर गुण आगरा ॥ नि० ५ ॥ त्रीजे अंग कह्या दस थविरा, रत्नत्रयीना गुणधरा । ते इह निर्मल भावे अहिवा, भविक सरोज दिवाकरा ॥ नि० ६ ॥ क्षीरजलधिसम अतिहि गंभीरा, सुरगिरि गुरु धीरज धरा, शरणागत तारणता धारा, ज्ञानविमल जल सागरा ॥नि०७॥ श्रुत पद धीरज ध्यान करणते, द्रव्यादिक ज्ञातावरा । तेह स्वरूप रमण कह्या थविरा, नहीय धवल केशांकुरा ॥ नि० ८॥ एह थविरपद सेवी भगते, पदमोत्तम वसुधेशरा। पद श्रीजिन ‘हरषे तिण लहिये, मुनिवर कुमुद निशाकरा ॥ नि० ९ ॥ ॥काव्य ॥ सम्मत्तसंयम, पतित भविजन, अतिहि थिर करता भला। अवगुण अदूषित, गुण विभूषित, चंदकिरण समुज्जला । अष्टाधिकादश सहस शीलांग, रथ रुचिर धाराधरा । भवसिंधु तारण, प्रवर कारण, नमो थविर मुनीसरा ॥१०॥ ॐ ह्रीं श्री स्थविराय नमः । षष्ट उपाध्यायपद पूजा ॥दोहा ॥ प्रवरनाण दरसण चरण, धारक यति धर्म सार । समितिपंच त्रिण गुप्तिधर, निरुपम धीरजधार ॥१॥ चरण कमल जेहनां नमें, अहोनिश सुर नर राय । जडता गिरिदारण कुलिश, जयजय श्री उवज्झाय ॥२॥ ॥ राग भैरव ॥ (पंच वरणक आंगी राची) भाव धरी उवझाया वंदो, विजयकारी । श्रीउवझाय परमपद बंदी, लहो जिनपद अतिशय धारी ॥ भा० ॥३॥ कुमति मदतरु भंजन सिंधुर, सुमतिकंद धन हैं अवतारी । अंग दुवालस भणे भणावे, शिष्य भणी चित RAAJasteresHITHAKTARIKAAREENahatathiottpadtattarashatatatasterstitiartEMATAARAAMAamatma nabaddapalliACRO2ODORALoenwlANISATERatanimal রুক্ষণগুক্ষণ#*#*
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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