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________________ ३५० st Yashasta haatasheet case जैन-रत्नसार ॥ श्री राग ॥ ( जिनगुणगानं श्रुत अमृतं, > - प्रवचन ध्यानं सुखकरणं, परिहरिये सहु विषय विकारं, करिये प्रवचन आचरणं ॥ प्र० ३ ॥ सप्त भंगी भूषित ए प्रवचन, स्यादवाद मुद्राभरणं । सप्त नयात्मक गुणमणि आगर, बोधबीज उत्पति करणं ॥ प्र० ४ ॥ जैसे अमृत पान करणतें, हवइ सकल विष संहरणं । तैसे प्रवचन अमृत पाने, कुमति हलाहल प्रविशरणं ॥ प्र० ५ ॥ प्रवचनको आय ए कहिये, सकलसंघ तसु अधिकरणं । तिण ए संघ चतुर्विध प्रवचन, ए पद अखिल कलुष हरणं ॥ प्र० ६ ॥ यदि भविजन तुम ए चाहतु हो, मुगति रमणिजन वशकरणं । करण तीन इक करि तप करियें, प्रवचन पद समरण धरणं ॥ प्र० ७ ॥ जिनवरजी पण ए तीरथने, प्रणमे मध्यसमवसरणं । भवजल तारण तरणि समानं, ए तीरथ अशरण शरणं ॥ प्र० ८ ॥ जिम भरतेसर संघ भगति करि, लहियो पुण्यफला चरणं । चकी पद अनुभवि वलि शिवपद, लीध करिय करम निर्ज - रणं ॥ प्र० ९ ॥ नरपति संभवजिन हरषे करि, आराधो प्रवचन चरणं । करम निकंदी थयो जगदीसर, जिन परमा उर आभरणं ॥ प्र०१० ॥ ॥ काव्य ॥ अनंतसंसुद्ध गुणायरस्स, दुक्खंधयारुग्गदिवायरस्स । अनंतजीवाण दयागिहस्स, णमो णमो संघचउव्विहस्स ॥ ११ ॥ ॐ ह्रीं श्रीप्रवचनाय नमः | www. चतुर्थ आचार्यपद पूजा ॥ दोहा ॥ ININKIN おたちを पद चतुर्थ नमिये सदा, सूरीसर महाराज । सोहम जंबू सारिखा, सकल साधु सरताज ॥१॥ सारण चारण चोयणा, पडिचोयण करतार | प्रवचनकज विकसायवा, सहस किरण अवतार ॥२॥ lobbit todatatattvakbasna2013 |
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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