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________________ *A tt oriekcivirat-re sI3yindiatesti-furthermoonkattactartstonstitatert1rstition.in पूजा-विभाग ३४३ नयन प्र.प्र.प्राणभूत्रप्रकला प्रपत्रपत्रअ.नत्र चन्चममन्त्रिमनमत्रत्र- 113114 ॥राग कल्याण ॥ हो तेरी पूजा बणी है रसमें । अप्ट मंगल लिखे, कुशल निधान, .तेज तरणके रसमें ॥ हां० ३ ॥ दर्पण भद्रासन नंद्यावर्त्त पूर्ण कुभ, मच्छयुग श्रीवच्छ तसुमें। वर्धमान स्वरितक पूजा मंगलिक, आनंद कल्याण सुखरसमें ॥ हां० ४॥ चतुर्दश धूप पूजा ॥ दोहा ॥ गंधवटी मृगमद अगर, सेल्हारस घनसार । धरि प्रभु आगल धूपणा, चउदमि अरचासार ॥१॥ ॥ राग वेलावल ॥ कृष्णागर कपूरचूर, सोगंध चम्पे पूर। कुदरुक्क सेल्हारस सार, गंधवटी घनसार ॥२॥गंधवटी घनसार चंदन मृगमदा रस भेलिये, श्रीवास धूप दशांग, अंबर सुरभि बहु द्रव्य मेलिये ॥ वेरुलिय दंड कनक मंडित, धूपदाणु कर | धरे । भववृत्ति धूप करंति भोगं, रोग सोग अशुभ हरे ॥३॥ ॥ रोग मालवी गौडी॥ सब अरति मथनमुदार धूपं, करति गंध रसाल रे ॥ देवा कर० ॥ धाम धूमा वलीय धूसर, कलुष पातिक गाल रे ॥ देवा, स. ४ ॥ ऊर्ध्वगति सूचंति भविकं, मघ मधे करनाल रे ॥ दे० ॥ चौदमी वामांग पूजा, दिये रयण विशाल रे । आरती मंगल माल रे, मालवी गौडीताल रे ।।स०५॥ पंचदश गीत पूजा ॥ दोहा ॥ कंट भले आलाप करी, गावो जिनगुण गीत । भावो अधिकी भावना, पनरमि पूजा प्रीत ॥१॥ ॥श्री राग ॥ आर्यावृत्तं ॥ यद्वदनंतकेवल, मणंत फल मस्ति जैन गुणगानं । । สัดส่งได้ใหะโตไคลโดยได้นัดไดไไดดป้องให้ จะได้ไอได้สักกะใจได้ใจไปัดให้ได้ยัดไส้สัดใจไปัดฝดได้ไม่ได้งได้ใจจัดได้ฟ้องใช้ในห้ใจได้ เขากให้ใครไพได้ใจได้ใครเคยโดน นักคงในไอไดไไดได้ใจได้ ในใจคนใจไดป้อ ได้โพด)
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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