SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भ्रमभ्रत्र चर्चৎদপশখখল YYYYY पूजा - विभाग ३४१ अंजना, मन मोहे रे ॥३॥ मौलि मुकुट रयणे जड्यो, काने कुण्डल हांरे । अति जुगते जुड्यो, उरहारू रे मनवारू रे || ४ || भाल तिलक बांहे अंगदा आभरण दशमी पूजा मुदा । सुखकारू रे, दुखहारू रे ||५|| ॥ राग केदारो ॥ प्रभु शिर सोहे, सुकुट मणि रयणे जड्यो । अंगद बाहु तिलक भालस्थल, एहु नीको कौन घड्यो ॥ प्र० ६ ॥ श्रवण कुण्डल शशि तरुण मंडल जीपे, सुरतरुसें अलंकर्यो । दुख केदार चमर सिंहासन, छत्र शिर उवरि धरथो, अलंकृत उचित वरयो ॥७॥ एकादश पुष्पगृह पूजा ॥ दोहा ॥ फूलघरो अति शोभतो, फूंदे लहके फूल | महके परिमल महमहा, ग्यारमी पूजा अमूल ॥१॥ ॥ राग रामगिरी ॥ मुचकुन्द वर विचिक कोज अंकोल रायबेलि नव मालिका, कुन्द हांरे अइही० वि० ए० ॥ तिलक दमणक दलं मोगरा परिमलं, कोमला पारिध पाडलं हां रे अ० पा० ए ॥ प्रमुख कुसुमें रचें त्रिभुवनकूं रुचे, कुसुम गेहे विच तोरणूं, हां रे अ० तो० ए ॥ गुच्छ चन्द्रोदयं झुम्बका उष्णयं, जालिका गोख चित चोरणूं हां रे अ० चो० ए ॥२॥ ॥ राग रामगिरी ॥ मेरो मन मोह्यो माई, आणंद झिले । असत उसत दाम बघरी मनोहर, देखत तत्र, सब दुरित खिले || फू० ३ ॥ कुसुम मंडप भगुच्छ चन्द्रोदय, कोरणि चारु विनाण सजे । ग्यारमी पूज भणी है गमगिरि विध विमाण, जैसे तिपुरभजे ॥ कृ० ४ ॥ Antoniantartante Juntant to fifts / Yunite tank Lt
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy