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________________ ilaita.kine जैन-रत्नसार प्रगटे अनुभव करुणा उच्छले । बहु मान परिणतवस्तु तत्त्वे अहव सुरकारण पणे, निज साध्य दृष्टे सरब करणी तत्त्वता संपति गिणे ॥६॥ ॥ढाल || शुद्धदेव गुरु धर्म परीक्षा, सद्दहणा परिणाम । जेह पामीजे तेह नमीजे, सम्यग्दर्शन नाम रे ॥ भ० सि० ७ ॥ मल उपशम क्षय उपशम जेहथी, जे होइ त्रिविध अभंग । सम्यग्दर्शन तेह नमीजे, जिनधरमें दृढ़ रंग रे ॥ भ० सि. ८ ॥ पांच बार उपशम लहीजे, क्षयउपशमीय असंख । एक बार क्षायक ते सम्यक् , दर्शन नमिये असंख रे ॥ भ० सि० ९ ॥ जे विण नाण प्रमाण न होवे, चारित्र तरु नवि फलियो। सुख निरवाण न जेविण लहिये, समकित दरशन बलिओ रे ॥ भ० सि० १०॥ सडसठ बोले जे अलंकरियो, ज्ञान चारित्रनुं मूल । समकितदर्शन ते नित प्रण शिवपंथनु अनुकूल रे ॥ भ० सि. ११ ॥ ॥ ढाल ॥ समसंवेगादिक गुणा, क्षयउपशम जे आवे रे । दर्शन ते हिज आतमा, स्यूं होय नाम धरावे रे ॥ वी० १२ ॥ ॐ ह्रीं परम परमात्मने अनन्तानन्त ज्ञानशक्तये जन्मजरा मृत्यु निवारणाय श्रीमद् सिद्धचक्राय दर्शन पदे अष्ट द्रव्यं मुद्रां यजामहे स्वाहा ॥ सप्तम श्री ज्ञानपद पूजा ॥ दोहा॥ सप्तम पद श्रीज्ञाननो, सिद्धचक्र तपमाह । आराधीजे शुभ मनें, दिन दिन अधिक उच्छाह ॥१॥ ॥ काव्य ॥ णाणं पहाणंजय सिद्ध चक्कं, तत्ताववोहिक्क मयं प्रसिद्ध। धरेह चित्तावसहे फुरंतं, माणक दीवुव तमोहरत॥२॥ अण्णाण सम्मोहतमो हरस्स, णमो णमो णाण दिवायरस्स ॥ पंचप्पयारस्सु वगारगरस, सत्ताणसव्वत्थपयासगस्त । हुई जेह थी ज्ञानशुद्धप्रवोधे, यथावर्णणासे विचित्राविबोधे ॥ तिण LKAKKAREEKEinlisa..lissanliadaKAJilabalkalaakhlaaaaaisihmlhalini-kholidabaalilariyana.tanthalalitihaMINATiladiKARAANAIYALATK atat.... ..thahaLamar
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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