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________________ ३०४ wrrammarrrrrrrrrrrrrrrrrrrrammar जैन-रत्नसार अति दीपै । इन्द्रध्वजा जगजीपे ॥ पूरण कलश पंडूर। पद्मसरोवर पूर ॥१८॥ इग्यारमें रयणायर । देखे माताजी गुणसायर ॥ बारमें भुवन विमान, तेरमें रतन निधान ॥१९॥ अगनिशिखा नीरधूम । देखें माताजी अनुपम ॥ हरखी रायनें भाखें ॥ राजा अरथ प्रकासे ॥२०॥जगपति जिनवर। सुखकर । होसे पुत्र मनोहर ॥ इन्द्रादिक जसु नमसे। सकल मनोरथ फलसे ॥२१॥ (वस्तुछंद ) पुण्य उदय २ । उपना जिननाह ॥ माता तब रयणी समें। देखि सुपन हरखंत जागीय ॥ सुपन कही निज कंतने, सुपन अरथ सांभलो साभागीय त्रिभुवन तिलक महागुणी ॥ होसे पुत्र । निधान, इन्द्रादिक जसु पाय नमी करसे सिद्धि विधान ॥२२॥ ॥ ढाल ॥ सोहमपति आसन कंपीयो । देई अवधे मन आणंदीयो। मुझ आतम निरमल करण काज ॥ भवजल तारण प्रगट्यो जहाज ॥२३॥ भव अटवी पारग सत्थवाह, केवल नाणाईगुण अगाह । शिव साधन गुणअंक्रूर जेह ॥ कारण उलट्यो आषाढि मेह ॥२४॥ हरख विकसे तब रोमराय । वलयादिकमां निज तनूं न माय ॥ सिंहासनथी ऊठयो सुरिन्द। प्रणमंतो जिन आनन्द कन्द ॥२५|| सगअड़पय समुहा आवितत्थ । करी अंजली प्रणमिअ मत्थ सत्य ॥ मुख भाखे ए क्षण आज सार । तियलोय पहूदीठो उदार ॥२६॥ रे रे निसुणो सुरलोय देव विषयानल तापित तनु समेव । तसु शान्तिकरण जलधर समान मिथ्याविष चूरण गरुड़वान ॥२७॥ ते देव जगत्तारण समत्य । प्रगट्यो तमु प्रणमी हुवो सणत्य ॥ इम जंपी शकस्तव करेवी । तब देव देवी हरखे सुणेवी ॥२८॥ गावे तब रंभा गीतगान । सुरलोक हुवो मंगल निधान । नरक्षेत्रे आरज वंसठाम ॥ जिनराज बधे सुर हर्ष धाम ॥२९॥ पिता माता घरे उच्छव अलेख । जिन शासन मंगल * अति विशेष । सुरपति देवादिक हरखसंग। संयम अरथी जननें 8ไรในไตไอได้ใดได้ไerไกใดใดไกลได้ใจได้ไงไปัดฝดใครได้ไหนไดไไไไรในใจไม่ได้มไดได้ในไดไไดไไไไไไไไไไไไไไไดไไดไปัจในงใจใจใ%ไทยนได้ใช้ไอใจได้ ให้ใคไขใจงใจฟังในในปัจในปัจงไรได้ใน
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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