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________________ wrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrrorm मनमनगटप्रमाणपत्रव्यप्रनत्रयमनमानस्यनननननननननननननन्यनम Dishixxxkakkaktixxxxxsex.vedetkarsears arriasisristiakkattakatahksexkisoriastatistiatixatesy २८२ जैन-रत्नसार खाहा । ७ ॐ ईशित्वसिद्धये नमः स्वाहा । ८ ॐ वशित्वसिद्धये नमः स्वाहा । चतुर्दश वलय इसके बाद चार कोने में चार द्वारपालों के नामों की स्थापना कर पूजा करे। १ श्री गौतमस्वामिने नमः । २ श्री धरणेन्द्रोरक्षतु । ३ श्री पद्मावति रक्षतु । ४ श्री वैरोट्या रक्षतु । ऋषिमण्डल पूजन की सामग्री २४ गोले, ८ गोले, ५२ पान, ६ कटोरीमें १६-१६, २ में ३२-३२ किसमिस, ४८ छुहारे, २४ सुपारी, २४ सुपारी, २४ सुपारी, २४ सुपारी, २४ सुपारी, १६ सुपारी, ९ कलश, ६४ सुपारी, ८ मिश्री के कुञ्ज, ८ नारंगी। __. अष्टापद मण्डल पूजा विधि प्रथम शुभदिन, शुभघड़ी, शुभमुहूर्त, शुभनक्षत्र और कराने वाले का चन्द्र बल देखकर अष्टापद मण्डल की स्थापना में गोलाकार रूप चौवीसों भगवान् के नामों की स्थापना करके पूजन करे और मैनफल, मरोडफली, मौली, शिखावन्धन, अङ्गरक्षा, देववन्दन तथा दशदिग्पाल, नवग्रहों के पट्टों की पूजन भेट आदि, सब क्रियायें नवपद मण्डल पूजा विधि के समान ही करे पीछे अष्टद्रव्य चौबीसों भगवानों पर चढ़ावे । प्रथम जिन पूजा मन्त्र श्री नाभेयजिनेशत्वं, नन्द्यायतसिदांशुकः। यथाकुमुद्रती नेता, नन्यायतसितांशुकः । ॐ ह्रीं श्रीं अहं ऐं श्री ऋषभदेव स्वामीअत्रवेदिकापीठे तिष्ठ तिष्ठ स्वाहा ॥१॥ अष्टद्रव्य चढ़ावे ।। . द्वितीय जिन पूजा मन्त्र उपाध्वमतितं भक्त्या, कन्दधाना मनेकपं। प्रणतो द्वोधितं ज्ञान, कन्द AkalisatioratiolatiotkatialisticlestatKKAMALAYAKKHELARAMMAREKHANEYANAVEENERYERAIKELYANValeslakiNikitHIXMASTRYIESMATAASikaki rahahahar tamilar
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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