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________________ LabhakarkiathkhtosahitihaasakaitianetseharkatitheliabkReathetiksakshistothkhare २७२ animuvwww . word जैन-रत्नसार नमः स्वाहा । १५ ॐ कन्दर्पायै नमः स्वाहा । १६ ॐ निर्वाण्यै नमः स्वाहा। १७ ॐ वलायै नमः स्वाहा । १८ ॐ धारिण्यै नमः स्वाहा। १९ ॐ धरणप्रियायै नमः स्वाहा । २० ॐ नरदत्तायै नमः स्वाहा । २१ ॐ गान्धाय्य नमः स्वाहा । २२ ॐ अम्बिकायै नमः स्वाहा । २३ ॐ पद्मावत्यै नमः स्वाहा । २४ ॐ सिद्धायिकायै नमः स्वाहा । षष्ट वलय इसके बाद छठे वलय में ९ नवनिधानों के नामों की स्थापना कर पूजा करे और ९ कलश चढ़ावे । १ ॐ नैसर्पकाय नमः स्वाहा । २ ॐ पाण्डुकाय नमः स्वाहा । ३ ॐ पिङ्गलाय नमः स्वाहा । ४ ॐ सर्वरत्नाय नमः स्वाहा । ५ ॐ महापद्माय नमः स्वाहा । ६ ॐ कालाय नमः स्वाहा । ७ ॐ महाकालाय नमः स्वाहा। ८ ॐ माणवाय नमः स्वाहा । ९ ॐ शङ्खाय नमः स्वाहा । सप्त वलय पांच रक्षकों के नामों की स्थापना कर पूजा करे और ५ सीताफल चढ़ावे । १ॐ विजयस्वामिने नमः स्वाहा । २ ॐ क्षेत्रपालाय नमः स्वाहा । ३ ॐ चक्रेश्वर्यै नमः स्वाहा । ४ ॐ धरणेन्द्राय नमः स्वाहा । ५ ॐ पद्मावत्यै नमः स्वाहा । अष्ट वलय इसके बाद दशदिग्पालों के नामों की स्थापना करके पूजा करे और पान अष्टद्रव्य सहित नगदी चढ़ावे । १ॐ इन्द्राय नमः स्वाहा। २ ॐ अग्नये नमः स्वाहा । ३ ॐ यमाय नमः स्वाहा । ४ ॐ नैऋताय नमः स्वाहा । ५ ॐ वरुणाय नमः स्वाहा । ६ ॐ वायव्याय नमः स्वाहा । ७ ॐ कुबेराय नमः स्वाहा । ८ ॐ ईशानाय । नमः स्वाहा । ९ ॐ नागाय नमः स्वाहा । १० ॐ ब्रह्मणे नमः स्वाहा । त्रिचनाप्रवन नगन्यत्र प्रश्न पत्र प्रत्र Arcाल्यूष्ाानमनटल हस्तानमानस्थलमा
SR No.010020
Book TitleJain Ratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSuryamalla Yati
PublisherMotilalji Shishya of Jinratnasuriji
Publication Year1941
Total Pages765
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size32 MB
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